Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Saubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
Publisher: Jain Sahitya Samiti

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Page 557
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५१४ ] [प्राचाराग-सूत्रम् वस्त्रं वा पतग्रहं वा कम्बलं वा पादपुञ्छनं वा, प्राणिनः, भूतानि, जीवान्, सत्वान्, समारभ्य समुद्दिश्य कीत पामिचं (अपरस्मादुच्छिनं) श्राच्छिन्नम्, अनिसृष्टम्, अभिहृतं, श्राहृत्य ददामि, पावसथं वा समुच्छृणोमि तद् भुव, वत्स, आयुष्मन् ! श्रमण ! । भिक्षुस्तं गहपति समनसं सवयसं प्रत्याचक्षीत-श्रा युष्मन् गृहपते ! न खलु ते वचनमाद्रय, न खलु ते वचनं परिजाणामि, यस्त्वं ममार्थाय अशनं वा ४ वस्त्रं वा ४ प्राणिनः वा समारभ्य समुद्दिश्य क्रीतं पामिचं, प्राच्छिन्नमनिसृष्टमभिहृतमभिहृत्य ददासि, श्रावसथं वा समुच्छृणोषि, स विरतोहम् आयुष्मन् गृहपते ! एतस्याकरणतया । शब्दार्थ-से भिक्खु-वह साधु । सुसाणंसि वा-श्मशान में । सुन्नागारंसि वा-शून्य घर में अथवा । गिरिगुहंसि पर्वत की गुफा में। रुक्खमूलंसि वा=वृक्ष के नीचे । वा अथवा। कुम्भाराययणंसि वा-कुम्हार के घर में । परिक्कमिज वा-फिरता हो। चिट्ठिज वा-खड़ा हो। निसीइज वा=बैठा हो । तुयट्टिज वा अथवा सोया हो । हुरत्थ वा अथवा अन्यत्र । कहिंचि= कहीं पर। विहरमाणं-विचरते हुए । तं भिक्खु-उस भिक्षु के । उवसंकमित्त-समीप आकर । गाहावई-कोई गृहस्थ । बूया बोले । आउसंतो हे आयुष्मन् । समणाश्रमण । अहं खलु मैं। तवश्रवाए तुम्हारे लिए । असणं वा अशन | पाणं वा-पेय । खाइमं वा-खादिम । साइमंवा-3 स्वादिम पदार्थ । वत्थं वा वस्त्र । पडिग्गह-पात्र । कंबलं वा कम्बल। पायपुञ्छणं-रजोहरण । पाणाई-प्राणियों का । भूयाई-भूतों का । जीवाई-जीवों का । सत्ताई-सत्त्वों का । समारब्भ= समारम्भ करके । समुद्दिस्स तुम्हें उद्देश्य करके । कीयं-खरीद कर । पामिच्चं-उधार लेकर । आच्छिज्ज-निर्बल से छीन कर । अणिसि-दूसरे के होने पर उनकी आज्ञा के बिना लाकर । अभिहडं आपके सन्मुख लाया हुआ । अाहटु लाकर । चेएमि देता हूँ। श्रावसह मकान । समुस्सिणोमि बनवाता हूँ अथवा जीर्णोद्धार करवाता हूँ । से-सो। भुञ्जह-याप उपभोग करें। सह-उसमें रहें। उसंतो समणा हे आयुष्मन् श्रमण ! भिक्खु-वह भिनु । तं-उस । सवयसं-समवयस्क मित्र को। समणसं मनस्वी। गाहावई-गृहस्थ को। पडियाइक्खे इस प्रकार कहे । पाउसंतो गाहावई हे आयुष्मन् गृहस्थ! । नो खलु ते वयणं आढामि मैं तेरे वचनों का आदर नहीं करता हूँ । नो खलु ते वयणं परिजाणामि और न पालन करता हूं । जो तुम जो तुम । मम अट्ठाए मेरे लिए । असणं वा ४ अशनादि । वत्थं वा ४ वस्त्र पात्रादि । पाणाई ४ वा-प्राणियों भूतों का । समारम्भ समारम्भ करके । समुद्दिस्स-उद्देश्य बनाकर । ( "कीयं से लगाकर "आह?" तक का शब्दार्थ पूर्ववत् )। चेएसि-देते हो । आवसहं वा समुस्सिणासि= मकान बनवाते हो । आउसो गाहावई हे आयुष्मन् गृहस्थ । एयस्स अकरणयाए ये नहीं करने के लिए तो । से वह मैं । विरो=त्यागी बना हूं। For Private And Personal

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