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[ आचाराङ्ग-सूत्रम्
से बेमि अप्पे च्चाए हणंति, पेगे जिणाए वहंति, पेगे मंसाए वहंति, पेगे सोणियाए वहंति, एवं हिययाए, पित्ताए, बसाए, पिच्छाए, पुच्छाए, बालाए, सिंगाए, विसाणाए, दंताए, दाढाए, पहाए, रहारूणीए, अट्टीए, अट्टिमिंजाए, अट्टाए, अट्टाए, पेगे हिंसिंसु मेत्ति वा वहति. पेगे हिसंति मे त्ति वा वहंति पेगे हिंसिस्संति मे त्ति वा वहंति (५३)
संस्कृतच्छाया - नद् ब्रवीमि, अप्येके अर्चार्थ घ्नन्ति, अप्येके अजिनार्थ अन्ति, अप्येके मांसार्थ घ्नन्ति, अप्येके शोणितार्थ घ्नन्ति, एवं हृदयाथ, पित्तार्थ, वसार्थ, पिच्छार्थ, पुच्छार्थ, बालार्थ, शृङ्गार्थ, विषाणार्थे, दन्तार्थ, दंष्ट्रार्थे, नखार्थ, स्नाय्वर्थ, अस्थ्यर्थ, अस्थिमिअर्थ, अर्थायानर्थाय, अप्येके हिंसितवान् मेइति घ्नन्ति, अप्येके हिंसन्ति मे इति वा घ्नन्ति अप्येके हिंसिष्यन्ति मे इति वा घ्नन्ति ।
शब्दार्थ — से बेमि- मैं कहता हूं । अप्पेगे= एक एक प्राणी । श्रच्चाए - देवी देवताओं की पूजा के लिए । हति त्रस जीवों को मारते हैं । अप्पे कोई । जिणाए वहति - चमड़े के लिये मारते हैं । अप्पेगे मंसाए वहति = कोई मांस के लिए मारते हैं । अप्पेगे सोणियाए वहंति = कोई खून के लिए मारते हैं । एवं इसी तरह । हिययाए - हृदय के लिए । पित्ताए = पित्त के लिए । वसाए=चर्बी के लिए । पिच्छाए = मोरपिच्छी के लिए । पुच्छाए - पूँछ के लिए । बालाए-बाल के लिए । सिंगाए = सींग के लिए । विसाणाए - विषाण के लिए । दंताए दांत के लिए | दाढाए= दाढ़ के लिए | हाए नख के लिये । एहारूणीए = नसों के लिए। अट्ठीए हड्डी के लिए ।
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जा हड्डी के अन्दर के भाग के लिए । अट्ठाए- प्रयोजन से । श्रट्टाए बिना प्रयोजन से । अप्पेगे= कोई | हिंसिंसु मेत्ति वा वहंति इसने मुझे मारा यह जानकर हिंसा करते हैं । अप्पेगे हिंसंति मे = कोई यह मुझे मारता है इसलिए हिंसा करता है । अप्पेगे= कोई । हिंसिस्संति मे ि -वहंति = यह मुझे मारेगा इसलिए हिंसा करते हैं ।
भावार्थ- कोई कोई अज्ञानी और अन्धश्रद्धालु लोग देवी-देवताओं को भोग देने के लिये त्रसादि जीवों को मारते हैं, कोई चमड़े के लिये - व्याघ्र आदि को, मांस के लिए सूअर आदि को, खून के लिए, मंत्रसाधक पशु के हृदय को निकालकर मथते हैं अतः हृदय के लिए, पित्त के लिए मोरया दि को, चर्बी के लिए बाघ, मगर वराह श्रादि को, पिच्छी के लिए मयूर आदि को, पूंछ के लिए रोझ आदि को, बाल के लिए चमरी गाय को, सींग के लिए मृग और गड़ा को ( याज्ञिक इनके श्रृंग को पवित्र मानते हैं, ) विषाण (शूकर दन्त) के लिए सूअर को दन्त के लिये हाथी आदि को, दाढ के लिए बराह आदि को, नख के लिए व्याघ्र को नसों के लिए गाय बैल को, हड्डी के लिए शंख - सीप को, हड्डी की
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