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पञ्चम अध्ययन चतुर्थोदेशक ] तन्निवेसणे, जयं विहारी चित्तनिवाई पंथनिज्झाई, पलिबाहिरे, पासिय पाणे गच्छिजा।
संस्कृतच्छाया-वचसाऽपि एके उक्ताः कुप्यन्ति मानवाः, उन्नतमानश्च नरो महता मोहेन मुह्यति, संबाधा बहव्यः भूयो भूयो दुरतिक्रमा अजानानस्य, अपश्यतः, एतत् ते मा भवतु एतत् कुशलस्य दर्शनम् । तदृष्टिः, तन्मुक्तिः, तत्पुरस्कारः, तत्संज्ञी, तन्निवेशनः, यतनया विहारी, चित्तनिपाती, पथनिध्यायी, परिबाह्यः ( अवग्रहाद् बहिर्वती ) दृष्ट्वा प्राणिनः गच्छेत् ।
शब्दार्थ-एगे माणवा कोई मनुष्य । वयसा विवचनमात्र से भी। बुइया कुछ कहने पर । कुप्पंति क्रोध करते हैं । उन्नयमाणे य=और अभिमानी । नरे-मनुष्य । महया मोहेण= महा मोह से । मुज्झइ विवेक शून्य बनते हैं । अजाणो ऐसे अज्ञानी । अपासो अतत्त्वदर्शी को । भुजो भुज्जो बारबार । वहवे बहुत सी । संबाहाबाधाएँ । दुरइकम्मा=दुर्लचनीय हो जाती हैं । एयं=ऐसा । ते तुम्हारे लिए । मा होउ न हो । एयं=ऐसा । कुसलस्स-वीर जिनेश्वर का। दंसणं अभिप्राय है। तद्दिट्ठीए-साधक गुरु की दृष्टि से देखना सीखे। तम्मुत्तीए-गुरु द्वारा उपदिष्ट निःसंगता-अनासक्ति से रहे। तप्पुरकारे सभी कार्यों में गुरु को आगे करके—बहुमान करके विचरे । तस्सन्नी-गुरु में पूर्ण श्रद्धा रखे । तन्निवेसणे-गुरु के पास रहने वाला हो । जयं विहारी-यतना से विहरने वाला हो। चित्तनिवाई-गुरु के अभिप्राय का अनुसरण करके। पंथनिझायी-मार्ग अवलोकन करने वाला । पलिवाहिरे-गुरु के अवग्रह से बाहर रहने वाला हो-न अधिक दूर न अधिक पास रहने वाला हो। पाणे पासिय-गुरु के द्वारा कहीं भेजे जाने पर प्राणियों को देखता हुआ । गच्छिज्जा=यतना से चले। कि भावार्थ-कितने ही साधक केवल वचन द्वारा ज्ञानीजनों की हित शिक्षा मिलते ही क्रोधित हो जाते हैं । वे अभिमानी पुरुष महा मोह से विवेक शून्य बन कर गच्छ से अलग हो जाते हैं। ऐसे अज्ञानी और अतत्त्वदर्शी पुरुषों को पश्चात् अनेक विपत्तियां आती हैं जिनका उल्लंघन करना उनके लिए कठिन है । इसलिए हे शिष्य ! तुम्हारे लिए ऐसा न हो । यह वीर जिनेश्वर का अभिप्राय है । इसलिए साधक सदा गुरु की बताई हुई दृष्टि से अवलोकन करना सीखे, गुरु द्वारा उपदिष्ट निःसंगता-अनासक्ति का पालन करे, सद्गुरु को सभी स्थानों में बहुमान पूर्वक प्रधानता दे, गुरु में पूर्ण श्रद्धा रक्खे और सदा गुरु के पास में रहे । सदा यतना से विचरने वाला हो, गुरु के अभिप्रायों के अनुसार वर्ताव करने वाला हो, गुरु के कहीं जाने पर उनकी राह देखने वाला हो और गुरु के शरीर से साढ़े तीन हाथ दूर रहकर सदा छाया की भांति उनके साथ रहे | गुरु के द्वारा कहीं भेजे जाने पर यतनापूर्वक जीव-जन्तुओं को देखता हुआ जावे।
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