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[पापारा-सूत्रम्
दृष्टियों का समावेश ठीक तरह हो जाता है जैसे नदियों का समुद्र में । उक्त वादियों के मतों की अपूर्णता का कारण बताते हुए सूत्रकार कहते हैं:
जमिणं विप्पडिवन्ना मामगं धम्म पन्नवेमाणा इत्थवि जाणह अकस्मात् एवं तेसिं नो सुयक्खाए धम्मे नो सुपन्नते धम्मे भवइ । से जहेयं भगवया पवेइयं श्रासुपनेण जाणया पासया अदुवा गुत्ती वयोगोयरस्स त्ति बेमि ।
___ संस्कृतच्छाया–यदिदं विप्रतिपन्नाः मामकं धर्भ प्रज्ञापयन्तः (स्वतो नष्टाः, परानपि नाशयन्ति) अत्रापि जानात "अकस्मात्" एवं तेषां न स्वाख्यातो धर्मो न सुप्रज्ञापितो धर्मो भवति । तद्यथेदं भगवता प्रवेदितमाशुप्रज्ञने जानता पश्यता अथवा गुप्तिर्वाग्गोचरस्येति ब्रवीमि ।
शब्दार्थ-जमिणं इस प्रकार जो। विप्पडिवन्ना=विवाद करते हैं तथा । मामगं= अपने माने हुए। धम्म=धर्म को ही। पनवेमाणा=सत्य प्ररूपित करते हुए स्वयं नष्ट होते हैं
और अन्य को भी नष्ट करते हैं । इत्थवि-इस विवाद के विषय में भी । जाणह-तुम यह समझो कि यह । अकस्मात् हेतुरहित है । एवं इस प्रकार । तेसिं-उनका । धम्मे=धर्म । नो सुयक्खाए= न तो भलीभांति कहा हुआ । नो सुपन्नते धम्मे और न सुप्ररूपित धर्म । भवइ होता है । से जहेयं जैसा कि । आसुपनेणं शीघ्र प्रज्ञा वाले । जाणया सर्वज्ञानी। पासया सर्वदर्शी । भगवया भगवान् द्वारा | पवेइयं प्रवेदित किया गया है। अदुघा अथवा । वोगोयरस्स-वचनगोचर की । गुत्ति-गुप्ति करनी चाहिए।
भावार्थ-इस प्रकार ये वादी अपने अपने धम को ही सत्य मानकर उसे ही मोक्ष दाता सिद्ध करने का कदाग्रह करते हैं और पारस्परिक निन्दा करते हुए स्वय डूबते हैं और दूसरे मन्दबुद्धि वालों को भी डुबाते हैं। ऐसे एकान्तवादियों का प्रसंग मिलने पर उन्हें यह प्रत्युत्तर देना चाहिए कि "तुम्हारा यह कथन हेतुरहित है" । इस प्रकार उन वादियों का एकान्त कथन रूप धर्म सु-आख्यात और सुप्ररूपित धर्म नहीं है। सु-आख्यात और सुप्ररूपित धर्म वही है जो प्राशुप्रज्ञ, सर्वज्ञानी एवं सर्वदर्शी भगवान् महावीर ने प्ररूपित किया है । ( जो साधु बुद्धिमान् और समथ हों उन्हें वादियों के कदाग्रह को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए परन्तु यदि कोई हेतु फलित न होता हो तो ) उन्हें मौन रहना चाहिए ।
विवेचन-ऊपर के सूत्र में विविध मतों एवं दर्शनों की मान्यता का कथन करने के बाद सूत्रकार यहाँ यह बताते हैं कि उनकी एकान्तवाद की मान्यता सत्य से दूर है और प्रमाणरहित है।
ये वादी अपने माने हुए धर्म को सत्य समझते हैं और उसे अनेक कुयुक्तियों द्वारा प्रमाणित करने की चेष्टा करते हैं। इतना ही नहीं वरन् वे दूसरों को भी यह ठसा देने की कोशिश करते हैं कि उनका
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