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महापरिज्ञा-नाम सप्तमम् अध्ययनम्
-व्युच्छिन्नम्
आचारांग जैसे महाशाख का यह अनमोल अध्ययन काल के कराल गाल में चला गया है यह हमारे लिए खेद का विषय है । इसके विषय में यह कहा जाता है कि जब वीर संवत १८० में देवर्धिक्षमाश्रमण गणिवर ने सूत्रों को पुस्तकारूढ किये तब इस अध्ययन में अनेक चमत्कारी विद्याओं का उल्लेख होने से सर्वसाधारण के हाथ में उनके आ जाने से हानि की सम्भावना से उसका लेखन स्थगित रखा। कुछ भी हो, हमारा यह दुर्भाग्य है कि ऐसा अमूल्य अध्ययन हमारी दृष्टि से सर्वथा विलुप्त हो गया।
इसके लिए संवेदना प्रकट करने के सिवाय और क्या किया जा सकता है ? ІЛЛЛЛЛЛЛЛЛЛЛ
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