Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Saubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
Publisher: Jain Sahitya Samiti

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Page 659
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६१६ ] [प्राचाराङ्ग-सूत्रम भुजे आहार करते थे ॥७॥ णचा हेय-उपादेय को जानकर । से महावीरे-उन महावीर ने । सयं पावगं नोवि य अकासी स्वयं पापकर्म नहीं किया । अन्नेहिं वा ण कारित्था अन्य से नहीं कराया । कीरंतंपि नाणुजाणित्या करते हुए को अनुमोदन भी नहीं दिया ॥८॥ ___ भावार्थ-भगवान् ने (चावल. बेर-चूर्ण और उड़द के बाकुल) इन तीन वस्तुओं का सेवन करके आठ मास तक देह का निर्वाह किया । (लगातार आठ मास तक इन नीरस वस्तुओं का ही आहार करना कितनी उग्र तपश्चर्या है !) भगवान् पन्द्रह-पन्द्रह दिन तक और मास-मास तक आहार तो क्या, जल तक नहीं पीते थे ॥५॥ कभी दो मास से भी अधिक समय तक और कभी छह-छह मास तक आहारपानी का सर्वथा त्याग कर भगवान् रात-दिन निरीह (भोजनादि की इच्छा रहित) होकर विचरते थे । वे पारणे में भी सादा-नीरस भोजन ही करते थे ॥६॥ वे भगवान् कभी दो-दो दिन के अन्तर से, कभी तीनतीन के अन्तर से, कभी चार-चार दिन के अन्तर से, कभी पांच-पांच दिन के अन्तर से, कभी छह-छह दिन के अन्तर से आहार करते थे । वे समाधि का विचार कर पारणे में अनासक्त-भाव से सादा आहार करते थे ॥७॥ हेय-उपादेय को जानकर श्रमण भगवान् महावीर ने स्वयं पापकर्म नहीं किया, अन्य से नहीं करावाया और करते हुए दूसरे को अनुमोदन भी नहीं दिया ॥८॥ विवेचन-दीर्घतपस्वी श्रमण भगवान महावीर की तपश्चर्या का वर्णन करते हुए सूत्रकार ने प्रथम ऊनोदरी-अल्पाहार की, तत्पश्चात् स्वादविजय की बात कही है और अन्त में उपवास से लेकर छह-छह मास तक उनके निर्जल-निराहार रहने का कथन किया है। सूत्रकार के इस कथन से क्रमपूर्वक शक्ति अनुसार तपश्चर्या करने की ध्वनि निकलती है। साधक के सामने यह आदर्श होना चाहिए कि श्राहार स्वाद के लिए नहीं है किन्तु देह के निर्वाह के लिए है । इसलिए देह की समाधि कायम रखने के लिए अनासक्तभाव से सादा भोजन करना चाहिए। भोजन के बिना भी निर्वाह हो सकता हो और समाधि कायम रह सकती हो तो भोजन नहीं करना चाहिए । साधक को क्रमशः अभ्यास करते हुए इस स्थिति पर पहुँचना चाहिए कि वह अधिक से अधिक दिन तक निराहार रहकर भी अपनी समाधि को कायम रख सके । भगवान् महावीर की उग्र तपश्चर्या का आदर्श प्रत्येक साधक के सन्मुख सदा रहना चाहिए। भगवान महावीर अपनी घोरतम तपश्चर्या के कारण 'दीर्घ तपस्वी और महावीर' कहलाये। उनके समग्र-जीवन का छठे से भी अधिक भाग तपश्चर्या की गोद में बीता । उनके साधना-काल का तो प्रायः सारा समय ही तपस्या में व्यतीत हुश्रा । कैसी है भगवान की उग्रतम तपश्चर्या ! भगवान् १२ वर्ष ६ मास और १४ दिन साधक अवस्था में रहे । दिनों की कुल संख्या ४५१४ होती हैं। इन दिनों में से ४१६५ दिन भगवान् निराहार रहे। शेष ३४६ दिन पारणा-दिवस रहे। कैसा है यह घोर तप ! भगवान की तपश्चर्या का विवरण इस कोष्टक से जानना चाहिए: For Private And Personal

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