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षष्ठ अध्ययन प्रथम उद्देशक ]
मोक्ष का सर्व श्रेष्ठ और सरल उपाय है। इसकी विवेकपूर्वक आराधना करनी चाहिए ।
.- उपसंहार --
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आत्मा के संशोधन के लिए और त्यागमार्ग की साधना के लिए पूर्वग्रहों का त्याग अनिवार्य है । पूर्वग्रहों के त्याग के बिना हृदयशुद्धि नहीं होती । हृदयशुद्धि हुए बिना त्याग और संयम के प्रति प्रेम, उत्साह और स्फुरणा नहीं हो सकती । जो कुछ दुख, व्याधि और संकट आते हैं इसका कारण अपने स्वयं के कर्म ही हैं। दुख को भोगे बिना छुटकारा नहीं अतएव धैर्य से सहन करना चाहिए और भावी जीवन की शुद्धि के लिए वर्त्तमान के सुधार पर लक्ष्य देना चाहिए।
इति प्रथमोद्देशकः
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नश्वर शरीर और अन्य पदार्थों की आसक्ति के कारण जीव, जीव का भक्षक हो रहा है इसलिए संसार का वातावरण भय से भरा हुआ है। सब प्राणी आकुल व्याकुल हो रहे हैं। इस अवस्था से बचने के लिए हिंसा का अवलम्बन लेना चाहिए। हिंसा भगवती की आराधना से जीव, जीव का भक्षक न होकर रक्षक हो जाता है। इससे भय का नाश होकर सर्वत्र अभय व्याप्त हो सकता है । निर्भय
और दूसरों को निर्भय बनाने के लिए श्रहिंसा की आराधना करनी चाहिए । यहीं कर्म - धुनन का मार्ग है।
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