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पञ्चम अध्ययन पञ्चमोद्देशक ]
[४८ प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा । ( तत्त्वार्थसूत्र ) प्राण दस कहे गए हैं:
पञ्चन्द्रियाणि त्रिविधं बलं च, उच्छ्वासनिःश्वासमथान्यदायुः ।
प्राणा दशैते भगवद्भिक्तास्तेषां वियोजीकरणं तु हिंसा ॥ अर्थात्-श्रोत्रेन्द्रिय प्राण, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शनेन्द्रिय प्राण, मन बल प्राण, वचन बल प्राण, काय बल प्राण, उच्छवास निश्वास प्राण, आयु प्राण ये दस प्राण भगवान् ने कहे हैं। इनका पृथक् करना हिंसा है। इन दस प्राणों को पीड़ा पहुँचाना भी हिंसा है। संसार स्थित आत्मा अमूर्त (सर्वथा) नहीं है अतएव वह आकाश की तरह निर्विकार नहीं है । आत्मा को ये प्राण उसी तरह प्रिय हैं जिस तरह चिरकाल से एक मकान में रहने पर वह मकान प्रिय लगने लगता है । कोई व्यक्ति जबरन् जब किसी का प्यारा मकान छुड़वाता है तो उसे दुख अवश्य होता है इसी तरह शरीर आत्मा का अति प्रिय मकान है उसे कोई जबरन छुड़ाता है तो आत्मा को कष्ट का अनुभव होता है । यह कष्ट पहुँचाना हिंसा है। हिंसा करने के पहिले प्रत्येक प्राणी को अपने समान समझना चाहिए इससे हिंसा का विचार कम होता जायगा । प्रत्येक विवेकी मुमुक्षु को हिंसा से सर्वथा बचना चाहिए। . जे पाया से विन्नाया, जे विन्नाया से अाया, जेण वियाणइ से पाया, तं पडुच्च पडिसंखाए एस आयावाई समियाए परियाए वियाहिए त्ति बेमि । - संस्कृतच्छाया—य आत्मा स विज्ञाता, यो विज्ञाता स आत्मा, येन विजानाति. स आत्मा, तं प्रतीत्य प्रतिसंख्यायते, एष प्रात्मवादी, सम्यग्तया पर्यायः व्याख्यात इति ब्रवीमि ।
शब्दार्थ-जे-जो। आया आत्मा है । से-वही । विनाया जानने वाला विज्ञाता है । जे विनाया जो विज्ञाता है । से आया वही आत्मा है । जेण=जिस ज्ञान के द्वारा । वियागह-वस्तु का स्वरूप जाना जाता है। से-वह ज्ञान । आया-आत्मा है। तं-उस ज्ञान को। पडुच्च-आश्रित कर-लेकर । पडिसंखाए आत्मा की प्रतीति होती है। एस-यह सम्बन्ध जानने वाला । आयावाई-आत्मवादी है ऐसे साधकों का । परियाए संयमानुष्ठान । समियाए सम्यम्। वियाहिए कहा गया है । त्ति बेमि-ऐसा मैं कहता हूँ। ... भावार्थ-जो आत्मा है वही जानने वाला विज्ञाता है, जो विज्ञाता है वही आत्मा है । जिसके द्वारा वस्तु का स्वरूप जाना जाता है वही ज्ञान आत्मा का गुण है । उस ज्ञान के आश्रित ही आत्मा की प्रतीति होती है । जो आत्मा और ज्ञान के इस सम्बन्ध को जानता है वही आत्मवादी है और उसका संयमानुष्ठान सम्यग् कहा गया है।
_ विवेचन-इस सूत्र में श्रात्मा और ज्ञान का अभेदं बताया गया है । यह अभेद धर्म और धर्मी 'की अभेद विवक्षा से है। श्रात्मा धर्मी है और ज्ञान उसका धर्म है। ज्ञानमय ही प्रात्मा है । आत्मा का
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