________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
५१२ ]
[आचाराग-सूत्रम्
___ उपसंहार करते हुए सूत्रकार फर्माते हैं कि पापकर्म के रहस्य को समझकर बुद्धिमान और पाप भीरु साधक हिंसा और अन्य पापों से निवृत्त बने । जब हिंसा के संस्कार निर्मल हो जाते हैं, अहिंसकवृत्ति श्रा जाती है तभी विवेक और पाप भीरुता सफल समझी जा सकती हैं। इसलिए साधक को वृत्ति में अहिंसकता लानी चाहिए।
-उपसंहार__इस उद्देशक के प्रारम्भ में कुसंग-त्याग का उपदेश दिया गया है। जीवन के विकास अथवा पतन में संगति का महत्त्वपूर्ण भाग रहता है। सत्संगति विकास की साधिका होती है जबकि कुसंगति विकास के मार्ग में बढ़े हुए साधक को भी बलात् पतन के गर्त में पटक देती है अतएव प्रारम्भ में ही सूत्रकार ने साधकों को कुसंग से दूर रहने का उपदेश दिया है।
कदाग्रह सत्य का प्रबल बाधक है अतएव साधक को कदाग्रह के ग्रह में न फंस जाना चाहिए। इसकी चर्चा करते हुए सूत्रकार ने विविध वादों की भी संक्षिप्त रूपरेखा दी है और यह बताया है कि एकान्तवाद मिथ्या है। विश्व में प्रचलित सभी धर्म, दर्शन अथवा मत सत्य के एक अंश रूप हैं। परन्तु जब अंश को ही सम्पूर्ण सत्य मानने अथवा मनवाने का आग्रह किया जाता है तो वह मिथ्या हो जाते हैं । मति-भिन्नता के कारण भिन्न-भिन्न विचार हो सकते हैं परन्तु अपने विचारों को परम सत्य मानकर कदाग्रह में पड़ जाना हानिकारक है । इसलिए सूत्रकार साधक के लिए अनेकान्त दृष्टि की अनिवार्य आवश्यकता बताते हैं।
जीवन में धर्म की सच्ची आराधना करने के लिए शुद्ध अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह रूप त्रियाम के पालन की आवश्यकता है। जीवन में ये तत्त्व जब ओतप्रोत हो जावें तो ही धर्म की आराधना समभनी चाहिए। जीवन-विकास में उपादान की शुद्धि होना आवश्यक है। उपादान शुद्ध होने पर साधक वन में अथवा भवन में, निर्जन स्थान में अथवा जनसमुदाय में चाहे जहाँ रहकर विकास कर सकता है। चाहिए उपादान की शुद्धि-पापरहित वृत्ति।
__ संसार में कोई भी प्राणी क्रियामुक्त नहीं है । संसार में क्रिया किसी न किसी रूप में अवश्य होती ही है । इस अवस्था में यह अनिवार्य है। अतएव क्रिया में विवेक की आवश्यकता है। विवेकमय क्रिया करने से साधक पाप से बच सकता है। क्रिया साधक का पतन नहीं करती लेकिन अविवेक-अधर्म साधक को विनाश के मुख में ढकेल देता है । अतएव विवेकपूर्वक क्रिया करते हुए आगे बढ़ना चाहिए।
इति प्रथमोद्देशकः Looooooooooooz
For Private And Personal