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द्वितीय अध्ययन द्वितीय उद्देशक ]
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एहि, गच्छ पतोत्तिष्ठ, वद, मौनं समाचर । इत्याद्याशाग्रहग्रस्तैः क्रीडन्ति धनिनोऽर्थिभिः ॥
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अर्थात् - धनवान् मदारी के समान बनकर आशा रखने वाले बन्दरों को इच्छानुसार नाच नचाते हैं । श्रा, जा, गिर, उठ, बोल, चुप रह आदि आदि उनके कहने के अनुसार वह क्रिया करता है ।
उपरोक्त बलों की प्राप्ति के लिए प्राणी विविध प्रकार के कर्मों का समारंभ करता है । परन्तु यह उसके हित के लिए है अत: बुद्धिमान् प्राणी का क्या कर्त्तव्य है सो कहते हैं
तं परिणाय मेहावी नेव सयं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभिज्जा, नेव अन्नं एएहिं कजेहिं दंडं समारंभाविज्जा, एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभंतंवि नं न समपुजाणिज्जा, एस मग्गे रिएहि पवेइए, जहेत्थ कुसले नोवलिंपिज्जासि तिमि ।
संस्कृतच्छाया - तत्परिज्ञाय मेघावी नैव स्वयमेतैः कार्यैर्दण्डं समारभेत, नैवान्यमेतेः कार्यैर्दण्डं समारम्भयेत्, एतैः कार्यैः दण्डम् समारभमाणमन्यं न समनुजानीयात् । एष मार्गः श्रायैः प्रबेदितः यथात्र कुशलः (त्वम्) नोपलम्पयेः इति बम |
शब्दार्थ — तं परिणाय यह जानकर | मेहावी-बुद्धिमान् । नेव सयं एएहिं कज्जेहिं दंड समारंभिजाइन कार्यों के लिये स्वयं हिंसा न करे । नेव अन्नं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभाविजा = इन कामों के लिए दूसरों से हिंसा न करावे । एएहिं कज्जेहिं-इन कामों के लिये । दंडसमारंभंतंपि अन्नं=हिंसा करते हुए किसी दूसरे को । न समगुजाणिजा = अच्छा न समझे । एस मग्गे - यह हिंसा - परिहारादि रूप मार्ग । श्ररिएहिं तीर्थंकरों द्वारा । पवेइए = प्रतिपादित किया गया है । जहेत्थ = इन विविध बलादि कामों में हिंसा का त्याग करके । कुसले - बुद्धिमान् । नोव - लिपिजासि = हिंसादि के लेप से स्वयं को लिप्त न करे ।
भावार्थ- पूर्वोक्त बलादिप्राप्ति के निमित्त की जाने वाली हिंसा अहितरूप है यह जानकर बुद्धिमान् साधक उपरोक्त कार्यों के लिए स्वयं हिंसा न करे, अन्य द्वारा न करावे और हिंसा करते हुए दूसरे को अनुमोदन न दें । यह अहिंसा का राजमार्ग तीर्थंकर देवों ने प्ररूपित किया है इसलिए चतुर व्यक्ति को चाहिये कि अपनी आत्मा हिंसकादि वृत्तिद्वारा हिंसा के लेप से लिप्त न बने ऐसा व्यवहार करे ।
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विवेचन - पूर्व प्रतिपादत बलादि प्राप्ति के निमित्त, अथवा माता-पिता आदि स्वजनों के निमित्त, अथवा विषय कषायादि के निमित्त प्राणी अन्य प्राणियों में दंड का समारम्भ करता है परन्तु यह समारम्भ उसके लिए अहित करने वाला और अज्ञान का बढ़ाने वाला है। यह जानकर विवेकी बुद्धिमान प्राणी