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३०६ ]
[प्राचाराङ्ग-सूत्रम्
आर्यवचनमेतत् । पूर्व निकाच्य समयं प्रत्येकं प्रत्येक प्रश्नयिष्यामि भो प्रावादुकाः ! कि युष्माकं सातं दुःखम् उतासातं ? सम्यक् प्रतिपन्नास्तान् चाप्येवं ब्रूयात् सर्वेषाम् प्राणिना, सर्वेषां भूताना, सर्वेषां जीवानां, सर्वेषां सत्वानाम् असातं अपरिनिर्वाणं महद्भयं दुःखमिति बवीमि ।
शब्दार्थ-लोयंसि-इस जगत् में। आवंति केयावंति–जितने कितनेक । समणा= श्रमण-बौद्धसाधु । माहणा य और ब्राह्मण । पुढो पृथक् २ । विवायं वयन्ति=धर्म-विरुद्ध बकवाद करते हैं । से दिटुं च णे हमने देखा है । सुयं च णे हमने सुना है । मयं च णे हमने माना है। विएणायं च णे निश्चित रूप से जाना है । उड्ढं ऊर्ध्वदिशा में । अहं अधोदिशा में । तिरियं= तिर्की दिशा में । दिसासु-सभी दिशाओं में । सुपडिलेहियं अच्छी तरह परीक्षा की है कि । सव्वे पाणा-सभी द्वीन्द्रिय प्राणी । सव्वे जीवा-सभी पंचेन्द्रिय जीव । सव्वे भूया सभी वनस्पतिकाय के जीव । सव्वे सत्ता सभी पृथ्वी आदि के जीवों को । हन्तव्या-मारना । अञ्जावेयव्या-दवाना
आज्ञा करना । परिघेत्तव्या-पकड़ना। परियावेयव्या संताप पहुँचाना। उद्दवेयव्वा-आणविहीन करना । नत्थित्थ दोसो इसमें कोई दोष नहीं है । इत्थवि जाणह=यह जानो। एयं-यह सब । अणारियवयणं अनार्यों का कथन है।। ____तत्थ इस पर । जे–जो । आरिया=आर्य पुरुष हैं । ते=वे । एवं वयासी इस प्रकार कहते हैं। से दुद्दिष्टुं च भे=यह तुम्हारा देखना दुष्ट है। दुस्सुयं च भे=तुम्हारा सुनना मिथ्या है। दुम्मयं च भे=तुम्हारा मानना दुष्ट है। दुन्धिण्णायं च भे=तुम्हारा निश्चित जानना दृष्ट है। ऊडढं-ऊर्ध्व । अहं नीची । तिरियं-तिर्की । दिसासु-दिशाओं में । सव्वो सभी तरह । दुप्पडिलेहियं च भे=तुम्हारी परीक्षा मिथ्या है। जं णं तुभे-तुम जो । एवं प्राइक्खह-इस प्रकार कहते हो । एवं भासह इस प्रकार बोलते हो। एवं परूवह इस प्रकार प्ररूपणा करते हो । एवं पएणवेह इस प्रकार प्रज्ञापित करते हो । सव्वे पाणा ४-सब प्राण, जीव, भूत, सत्त्व । हंतव्वा ५=मारने योग्य हैं आदि । इत्थवि=यह । जाणह-जानो कि । अत्थ इसमें। दोसो नत्थि-दोष नहीं है। अणारियवयणमेयं यह अनार्यों का वचन है। वयं पुण-हम तो । एवमाइक्खामो= इस प्रकार कहते हैं । एवं भासामो इस प्रकार बोलते हैं । एवं परूवेमो इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं । एवं पएणवेमो इस प्रकार प्रज्ञप्त करते हैं । सव्वे पाणा ४ सभी प्राणी, जीव, भूत, सत्त्व । न हन्तव्या-मारने योग्य नहीं हैं । न अजायेयव्वा-दवाने योग्य-श्राज्ञा करने योग्य नहीं हैं । न परिचित्तव्या-पकडने योग्य नहीं हैं। न परियावयव्वा-संताप पहुँचाने योग्य नहीं हैं। न उद्दवेयव्वा प्राणरहित करने योग्य नहीं हैं। इत्थवि-यह भी । जाणह-जानो कि । नत्थित्थ दोसो= इसमें दोस नहीं है । आरियवयणमेयं यह आर्य-पुरुषों के वचन हैं। पुव्वं पहिले । पत्तयं पत्तेयं प्रत्येक । समय-मत को । निकाय जानकर । पुच्छिस्सामिप्रश्न करता हूँ कि । हंभो है।
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