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नवम अध्ययन चतुर्थ उद्देशक
[ ६१७
अनुक्रम
तप का नाम
संख्या दिवस संख्या पारणा दिवस
१८०
१ १
१०८०
dor
१८०
१५०
३६०
१ पूर्ण छहमासी २ पांच दिन कम छह मास ३ चार मासिक ४ त्रैमासिक
भदाई मासिक वैमासिक मासखमण अर्ध मासिक अष्टम भक्त षष्ठ भक्त भद्रतप
महाभद्र तप १३ सर्वतोभद्र तप
wrAKAR
or Wor M४०
१०८०
३६.
४५८
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००
कुल योग
३५१
४१६५
३४६
इस प्रकार तपश्चर्या की आग में अपने प्रात्मा रूपी स्वर्ण को डालकर भगवान ने उस पर लगे हुए कर्म-मैल को जलाकर नष्ट कर दिया। उनकी आत्मा कर्म-मैल से मुक्त हो गई । उन्हें निरावरण केवलज्ञान और केवलदर्शन की प्राप्ति हो गई । वे सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हो गये । यह है तपश्चर्या का पुनीत प्रभाव! यह है तप का विमल प्रकाश ! ! धन्य है महिमामय तप ! और धन्य है महावीर की तपोमय साधना !!
गामं पविसे नगरं वा घासमेसे कडं परट्ठाए । सुविसुद्धमेसिया भगवं आयतजोगयाए सेवित्या ॥६॥ अदु वायसा दिगिबत्ताजे अन्ने रसेसिणो सत्ता । घासेसणाए चिट्ठन्ति सययं निवइए य पेहाए ॥१०॥ अदुवा माहणं च समणं वा गामपिण्डोलगं च प्रतिहिं वा। सोवाग मूसियारिं वा कुकुरं वावि विट्ठियं पुरभो ॥११॥ वित्तिच्छेयं वजन्तो तेसिमप्पत्तियं परिहरन्तो। मन्दं परक्कमे भगवं अहिंसमाणो घासमेसित्था॥१२॥
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