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उपधान श्रुताख्य नवम अध्ययन
-द्वितीय उद्देशकः
प्रथम उद्देशक में भगवान् की चर्या (विहार) का प्रतिपादन किया गया है । विहार करते हुए कहीं न कहीं निवास करना ही होता है अतः इस द्वितीय उद्देशक में भगवान की शय्या-उपाश्रय का प्रतिपादन किया जाता है। भगवान कैसे स्थानों में निवास करते थे, वहाँ रहते हुए किस प्रकार परीषह-उपसों को सहन करते थे इत्यादि बातें इस उद्देशक में बतायी गयी हैं। उद्देशक इस प्रकार प्रारम्भ होता है:
चरियासणाई सिजापो एगइयायो जात्रो बुइयायो। श्राइक्ख ताई सयणासणाइंजाइं सेवित्था से महावीरे॥१॥ श्रावेसणसभापवासु पणियसालासु एगया वासो । अदुवा पलियठाणेसु पलालपुजेसु एगया वासो ॥२॥ श्रागन्तारे श्रारामागारे तह य नगरे व एगया वासो। सुसाणे सुरणगारे वा रुक्खमूले व एगया वासो ॥३॥ एएहिं मुणी सयणेहिं समणे पासि पतेरसवासे ।
राइं दिवंपि जयमाणे अपमत्ते समाहिए झाइ ॥४॥ संस्कृतच्छाया-चर्याऽऽसनानि शयनानि, एकेकानि यान्यभिहितानि ।
पाचक्ष्व तानि शयनासनानि यानि सेवितवान् स महावीरः॥१॥ आवेशनसभाप्रपासु पण्यशालासु एकदा वासः। अथवा पलित (कर्म) स्थानेषु पलालपुजेष्येकदा वामः ॥२॥ आगन्तारेऽऽरामागारे तथा च नगरे वैकदा वासः। श्मशाने शून्यागारे वा वृक्षमूले वैकदा वासः ॥३॥ एतेषु मुनिः शयनेषुश्रमणः (समना) आसीत् प्रत्रयोदशवर्षम्।
रात्रि दिनमपि यतमानोऽप्रमत्तः समाहितो ध्यायति ॥४॥ शब्दार्थ-चरियासणाई-विहार में अवश्य होने वाले आसन । सिज्जाबो शय्यावस्ती । एगइयाश्रो जाप्रो बुझ्याओ= जो कोई भी कहीं गई हैं। ताई सयणासयाई-उन शय्या और आसन का ।आइक्स कथन करिये । जाई से महावीरे सेवित्था जिनका उन महावीर
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