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म अध्ययन षष्ठ उद्देशक ]
शब्दार्थ- सव्वे = सभी । सरा शब्द । जाते हैं । तक्का=तर्क | जत्थ न विजइ = वहाँ नहीं ग्रहण नहीं हो सकता । ओए अकेला कर्ममलरहित
।
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है
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[ ४३१
नियद्वंति = निवृत्त हो जाते हैं, असमर्थ हो
।
मई = बुद्धि से । तत्थ न गाहिया = उसका प्रकाश रूप | अपट्ठाणस्स = समग्र लोक
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का । खेयने ज्ञाता है | से= वह मुक्तात्मा । न दीहे न दीर्घ है । न हस्से =न छोटा है। न वट्टे = न गोल है । न तसे=न त्रिकोण है । न चउरंसे =न चौरस है । न परिमंडले = न मंडलाकार है । न कि न काला है । न नीले=न नीला है। न लोहिए=न लाल है । न हालिदे =न पीला है । न सुकिले=न सफेद है । न सुरभिगंधे=न सुगन्ध वाला है । न दुरभिगंधे=न दुर्गन्ध वाला है न तित्ते=न तीखा है । न कहुए =न कडुआ है। न कसाए =न कषैला है । न अंबिले= न खट्टा है । न महुरे=न मधुर है । न कक्खडे =न कर्कश है । न मउए = न मृदु है । न गुरूए =न भारी है।
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न लहुए =न हलका है । न सीए=न ठंड़ा है । न उएहेन उष्ण है । न निद्धेन स्निग्ध है । न लुक्खे = न रुक्ष है । न काउ-न शरीर वाला है । न रूहे न पुनः जन्म-मरण करने वाला है । न संगेन आसक्ति वाला है । न इत्थी-न स्त्री है। न पुरिसे=न पुरुष है। न नहा =न नपुंसक है । परिन्ने= वह ज्ञाता है । सन्ने सम्यग् ज्ञाता है । उवमा न विजइ - उसके लिए उपमा नहीं है। वी सत्ता = वह श्ररूपी सत्ता वाले हैं। अपयस्स = वह अवस्थारहित है श्रतएव । पर्यं पत्थि = उसको कहने वाला शब्द नहीं है । से वह । ण सद्दे न शब्द रूप है । न रूवेन रूप1 वान् है । न गन्धेन गन्ध रूप है। न रसेन रसरूप है। न फासे =न स्पर्श रूप है । इच्चैव= इतने ही वस्तु के भेद हैं ये उसमें नहीं है अतएव अवाच्य है । त्ति बेमि= ऐसा मैं कहता हूँ ।
मावार्थ — हे मोक्षार्थी जम्बू ! मुक्तात्मा का स्वरूप बताने के लिए कोई भी शब्द समर्थ नहीं हैं, तक की वहां गति नहीं है, बुद्धि वहां तक नहीं जाती, कल्पना नहीं हो सकती । हे शिष्य ! वह मुक्तात्मा सकलकर्मरहित सम्पूर्ण ज्ञानमय दशा में विराजमान है । वह मुक्त जीव न लम्बा है, न छोटा है, न गोल है, न त्रिकोण है, न चौरस है, न मंडलाकार है, न काला है, न नीला है, न लाल है, न पीला है, न सफेद है, न सुगन्ध वाला है, न दुर्गन्ध वाला है, न तीखा है, न कडुआ है, न कसैला है, न खट्टा है, न मीठा है, न कठोर है. न सुकुमार है, न भारी है, न हल्का है, न ठंड़ है न गर्म है, न स्नि न रुक्ष है, न शरीरंधारी है, न पुनर्जन्मा है, न श्रासक्त है, न स्त्री है, न पुरुष है, न नपुंसक है, वह ज्ञाता है परिज्ञाता है, उसके लिए कोई उपमा नहीं वह श्ररूपिणी सत्ता वाला है, अवस्थारहित है श्रतएव उसका वर्णन करने में कोई शब्द समय नहीं ह । वह शब्दरूप, रूपरूप, गंधरूप, रसरूप और स्पर्शरूप, नहीं है । (इतने ही वाच्य वस्तु के भेद हैं । इनका निषेध कर देने से मुक्त जीव अवाच्य है ) ।
विवेचन - इस सूत्र में मुक्तात्मा की दशा का वर्णन किया गया है। यह अवस्था ऐसी है कि इसका वर्णन शब्दों द्वारा नहीं हो सकता। शब्दों की वहाँ गति नहीं है, तर्क वहाँ तक नहीं दौड़ती, कल्पनाएँ
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