Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ६ आईकमुने!शालकस्य संवादनि० ५६७ ___ अन्वयार्थः- (अत्थिरेण) अस्थिरेण-चञ्चलचित्तेन महावीरेण (सा आजी; विया) सा आजीविका-जीवननिर्वाहः (पट्टविया) प्रस्थापिता कलिता-जीवननिर्वाहाय सर्व दम्भमानं तेन कृतमित्यर्थः, (सागओ गणी भिक्खुमझे) समागत:-समामध्ये उपविष्टो भणशो मिक्षुमध्ये (बहुजन्नमत्थं) बहुजन्यमर्थश्अनेकलोकहितम् उपदेशम् (आइक्खमाणो) आचक्षाणा-ददव (अवरेण पुव्वं न संघयाई) अपरेण-एतत्कालिकेन व्यवहारेण पूर्व-पूर्व कालिको उपवहारो न सन्दधावि-सर्वथा न मिलति-पूर्वापरविरुद्धमेज भवतीति ॥२॥ ___टीका-'अस्थिरेण' अस्थिरेण-चञ्चलेन तेन महावीरेण 'सा भाजीविया निर्वाह के लिए दंभ अंगीकार करलिया है 'समाओ गणनो भिक्खु मज्झे-समागतःणशःभिक्षुमध्ये वह सभामें जाकर साधुओं के बीच 'बहुजन्न मत्थं बहुजन्यमर्थन्' बहुत लोगों के हित के लिए 'आइक्खमाणो -आचक्षाणः' उपदेश देते हैं। 'अधरेण पुन्छन संघघाई-अपरेण पूर्व न सन्दधाति' उनका यह वत्तमान व्यवहार पूर्वकालिक व्यवहार से मेल नहीं खाता, यह परस्पर विरुद्ध आचरण है ॥गा०२॥
अन्धयार्थ-अस्थिरचित्त महावीर ने यह आजीविका घना ली है जीवननिर्वाह के लिए दंभ अंगीकार कर लिया है। यह सभा में जोकर साधुओं के बीच बहुत लोगों के हित के लिए उपदेश देते हैं। उनका यह वर्तमानकालिक व्यवहार पूर्वकालिक व्यवहार से मेल नहीं खाता। यह परस्पर विरुद्ध आचरण है ॥२॥
टीकार्थ-चंचल महावीर ने अपनी आजीविका चलाने के लिए यह सीधी छ. अर्थात् पन निवड भाट मनी स्वी४.२ ४३री दी। छे. 'समागओ गणओ भिक्खुमझे-समागतः गणशः भिक्षुमध्ये' ते समामा ने साधुसानी यम बहुजन्नमत्थं-बहुजन्यमर्थम्' मनाना हित भाटे 'आइक्खमाणो-आचक्षाणः' ५४२ मा छे 'अवरेण पुव्व न संधयाई-अपरेण पूर्व न सन्दधाति' तमना 2. भान या व्यवहारने भूतमा मायरे व्यवहानी સાથે મેળ ખાતો નથી. આ એક બીજાથી વિરૂદ્ધ પ્રકારનું આચરણ છે. ગારા
અન્વયાર્થ-અસ્થિર ચિત્તવાળા મહાવીર સ્વામીએ દંભને રવીકાર કરી લીધે છે તેઓ સભામાં જઈને સાધુઓની વચમાં ઘણું લેકેના હિત માટે ઉપદેશ આપે છે. તેમના આ વર્તમાન કાળને વ્યવહાર પહેલાના વ્યવહાર સાથે મળતું આવતું નથી આ આચરણ એકબીજાથી જુદા પડે છે. મારા
ટ્રીકાઈ–ચંચલ સ્વભાવના મહાવીરે પિતાની આજીવિકા ચલાવવા માટે