Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 781
________________ सूत्रकृतागायत्रे "रकिरिया अकिरिया वा) क्रिया अक्रिया वा (एवं सन्नं णिवेसए) एवमीशी संज्ञां-बुद्धि निवेशयेत्-कुर्यादिति ॥१९॥ 1 टीका-'किरिया' क्रिया 'अकिरिया या' अक्रिया वा-गमनागमनादिरूपा क्रिया-तदभावोऽक्रिया । 'जत्थि' नास्ति-क्रिया अक्रिया वा नास्ति एवं सन्न' एवं संज्ञाम्-बुद्धिवेशयम् 'ण' न 'णिवेमर' निवेशयेन् --निर्दिशेत् । किन्तु किरिया' क्रिया 'अकि रया वा' अक्रिया था-क्रियाया अभावः । अत्यि' अस्ति एवं' एवम्-इत्येवं रूपेण 'सन्नं संज्ञाम्-बुद्विम् ‘णिवेसर' निवेशयेत्-व्यापारयेत् । सांख्यो हि गगन वत्-व्यापकत्वं स्वीकृत्य तत्राऽऽत्मनि क्रियां न मन्यते । तया-बौद्धः सर्वेपां क्षणिकत्वमङ्गीकृत्य-उत्पत्त्यतिरिक्त क्रियाया अभावं मन्यते। तदुभयमपि न सम्यक् । यत आत्मनो व्यापकत्वे जन्मादिव्यवस्था न स्यात्, भक्रियत्वादात्मनः । तथा-चौद्धमते उत्पत्यतिरिक्त क्रियाया अस्वीकारे परिदृश्य चाहिए किन्तु किया है और अक्रिया भी है, ऐसी बुद्धि धारण करनी चाहिए ॥१९॥ . टीकार्थ-गमन आगमन आदि व्यापार को क्रिया कहते हैं और उसका भभाव अक्रिया है। इन दोनों का अस्तित्व नहीं है, ऐसा नहीं समझना पाहिए किन्तु यह समझना चाहिए कि दोनों का अस्तित्व है। सांख्यमत वाले प्रात्मा को आकाश के समान व्यापक स्वीकार करके भात्मा में क्रिया का अस्तित्व नहीं मानते । बौद्ध लोग समस्त पदार्थों को क्षणिक मानकर उनमें उत्पत्ति के अतिरिक्त अन्य कोई क्रिया का स्वीकार नहीं करते । यह दोनों मत युक्तिसंगत नहीं है। आत्मा को सर्वव्यापी मान लिया जाय तो जन्म आदि की व्यवस्था नहीं येठ सकती, क्योंकि सर्वव्यापक होने से आत्मा क्रिया नहीं कर सकेगा। - દ્વીકાર્ચ–ગમન આગમન વિગેરે રૂપ પ્રવૃત્તિને કિયા કહે છે. અને -તેના અભાવને, અક્રિયા કહે છે. આ બંનેનું અસ્તિત્વ નથી, એમ સમજવું M ...५२'तु मे समान ..-मन्ननु मस्तित्व छ. - 9 . સુષ્ય મતવાદી આત્માને આકાશની જેમ વ્યાપક હોવાનું સ્વીકારીતે આત્મામાં ક્રિયાનું અસ્તિત્વ માનતા નથી બોદ્ધો બધા જ પદાર્થોને કણિક માનીને તેમાં ઉત્પત્તિ શિવાય બીજી કોઈ પણ ક્રિયાને સ્વીકાર સતની આબોમતી યુક્તિ યુક્ત નથી, આત્માને - સર્વવ્યાપી માની म मातमविरेनी -०यवस्था घटी २४ती नथी. भ3-त १व्या साया सा हिया २४ नही ! . N o . -.. .

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