Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 737
________________ # , क ४७६ सूत्रकृताङ्गः 'अगायारं' अनाचारम् - आचारमतिकूळमाचरणम् - सावयानुष्ठानलक्षणम् 'नाय रेज्ज' नाचरेत् अनाचारसेवनं कथमपि न कुर्यादिति ॥गा. - १॥ मूलम् - अणाइयं परिन्नाय अणवदग्गेइ वा पुणो । सायमा वा इइ दिट्ठि न धारए || १ || छाया - अनादिकं परिज्ञाय अनवदग्रेति वा पुनः । शाधनमशाश्वतं वा इति दृष्टिं न धारयेत् ||२|| अन्वयार्थ :- (अणाइयं) अनादिकम् - आदिरहितम् (वा. पुणो ) वा पुनः (अणचदरगेड) अनवदग्रम् - अपमानम् - अनन्तम् इति (परिन्नाय) परिज्ञाय-सर्वलोकं प्रमाणद्वारा ज्ञात्रा (मास) शाश्वतम् - अविनश्वरम् (सास) अशाश्वतम्विनश्वरम् (इइ दिहिं) इति दृष्टिम् एतादृशीं सर्व एकान्त नित्यः, एकान्वाऽनिस्यो' वा इति बुद्धिम् (न धारप ) न धारयेत् न कुर्यादिति || २ || 4 1 · छास प्ररूपित इस धर्म में स्थित होकर कदापि अनाचार अर्थात् कुलित निषिद्ध या . सावध, आचार का सेवन न करे ॥१॥ 'अणा' इत्यादि । शब्दार्थ 'अणाइयं-अनादिकम् ' आदि रहित 'वा पुगो-वा पुनः' अधव 'अणवद्रोह - अनवद्यम्' अनवद्य अनन्त अन्तरहित ऐसा 'परिनापपरिज्ञाय' सर्वलोकको प्रमाण द्वारा जानकर 'सासए - शाश्वतम्' शाश्वत है अथवा 'असासए - अशाश्वतम् अशाश्वन-विनश्वर है 'इद दिडि- इतिदृष्टिम्' ऐसी एकान्त दृष्टिको 'न धारए - न धारयेत्' धारण न करे || २ || अन्वयार्थ - सम्पूर्ण लोक को प्रमाण के द्वारा अनादि और अनन्तजान कर यह शाश्वत: ही है या अशाश्वत, ही है, ऐसी एकान्त बुद्धि को धारण न करे ॥२॥ 15 · आवेंदा, मा धर्ममा, स्थित थर्धने, अर्ध पशु वजते मनायार अर्थात् मुत्सित નિષિદ્ધ અથવા સાવદ્ય આચારનુ` સેવન ન કરે !" 'अणाइय' त्याहि 1. शार्थ'--'अणाइयं-अनादिकम् ' माहिरषित 'वा पुणो वा पुनः' अथवा 'अणवदग्गेइ - अनवदग्रम्' अनवत्र- अनन्त अपर्यवसान 'परिन्नाय परिवाय प्रभाष द्वारा लखीने 'सासए - शाश्वतः ' शश्चित ४ छे. अथवा 'असासरअशाश्वतः' अशाश्वत ४ छे. 'इइ दिट्ठि - इति दृष्टिम्' मेवी दृष्टि 'न धारए-न धारयेत्' धारन ४२ ॥२॥ અન્નયા —સમ્પૂ લેાકને પ્રમાણન્દ્વ રા અનાદિ અને અનન્ત જાણીને આ શાશ્વત જ છે. અથવા અશાશ્વત જ છે. એવી એકાન્ત બુદ્ધિ ધારણ ન કરે ાંસા

Loading...

Page Navigation
1 ... 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791