Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
१३६
सूत्रकृताङ्गसूत्रे
मनस्य कधीघातादिना, पिरिया विजमाणस्स वा परिताप्यमानस्य वा परितार्थं पाकिलाभिज्नमार्णस्स चा क्लायमानस्य वा
शायमानस् विजमाणरस' वा 'उज्यमानस्य वा ग्यादर्श तादृशमुद्वेगमुपद्रवी मवियमः "म अमापं समजावं तदा मे दुख भवति किं बहुना "जाव' 'यतिः 'रोकन मायमपि / लोमोत्खलनमात्रमणि+लोमोत्पाटनमात्रमपि करोति हिंसाकाँग दुक्ख श्रेय पेडिस वेदेमिं' "हिंसाकारकं दुःखं मये प्रतिसंवेदयामि, ताडनोदिजनितुं दुखिं प्राचानुवामि 'इन्वेवं जाण' सुधर्मस्वामी जम्मभृतिशिष्यान म कथयति हे शिष्य । इत्येवम्-एवं प्रकारेण जानोहि, कि जानीहि तत्राह ने पाणा- सम्वे: भूपा: स जीवा संवे सत्ता' सर्वे प्राणाः (सवे भूताः सर्वे जीवाः सर्वे सत्या दिंडेण जावः कराखेण वा' दण्डेन वा यावत् कपालेन वा, या विदेन निग्रहणम् 'आकुट्टिन्जमाणा' कुत्र्यमानाः कशा दि 'प्रमाण वा हन्यमाना चा - घातं प्राप्यमाणाः तजि पाणावी' 'ताना वा - अड्गुलपादि 'वर्जनां प्राप्यमाणाः 'वीडिज्नमाणावा' ताडयि
.
t
77 पा
at
T
उत्पन्न करता है, कोडे आदि से ताड़ना करता है, से पहुं क्लेश उत्पन्न करता है या किसी प्रकार का उपश्य करना है
1
"
1
7
देतो
जैसे मुझको उत्पन्न होता है, अधिक क्या कहा जाय प्रातत. कोई
'
,
21"
}
एक रोम को बनना है, तो मैं हारीख को अनुभव करता , सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामी- म कहते है - हे जम्बू | इसी प्रकार यह भी जानो कभी पाणी गभी भूतमभी जीवो मरा डढे से पा करे से, यात शंग से मुद्दी तथा ईंट का मझ लेना चाहिए मारे जाते हैं, आदि से पंदें जाते हैं, आहत 'दुखी' किये जाते हैं, अंगुलि आदि दिखाये जाने
S
'टुकड
1.
P
(
પહોંચાડે લેશ ઉરનું કરે અથવા કોઇ પણ પ્રકારના ઉપ૧-૯૨ છે. ત જેમ મને દુખ ઉત્પન્ત થાય છે, વિશેષ શું કહેવુ' યાવત્ કાઈ અક રૂવ ટુ પશુ ઉખાડે તે હુ હિંસા-૨૬ દુ.ખના અનુભવ 'કરૂ છુ સુધર્માવાથી જ વ્યૂ स्त्र,भनेि_54/ छे÷डे!,४ग्णू मे प्रभा पैसघणा आडियो अधुना भूतो, राधाँ छ भने संघ सत्त्व यावत् ठराथी आशिया यावत शयी भुठ्ठि तथा गहु । समर्थ योनीश्रा भारवासां : भावे, आणु विगेरेथी माश्वासांत
7
p
"
र्थात्
हुःश्री ४२वामां आवे मांगणी विगेरे ताने' 'धगयामा वे
f.