Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 748
________________ समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ५ आचारश्रुतनिरूपणम् चाया--ये केचिक्षुद्रका प्राणा अथवा सन्ति महालया। ___सदृशं तेषा वैरमिति असदृशमिति च नो वदेत् ६। अन्वया:---(जे केइ) ये केचित् (खुड्गा) क्षुद्रकाः-एकेन्द्रियाः अल्पशरीरचन्ता वा, (पाणा) प्राणा:-प्राणिनो जीवाः, (अदुवा) अथवा-ये केचित् (महालया) महालया:-विशिष्टदेहवन्तः पञ्चेन्द्रिया अश्वगजादय. 'संवि' सन्ति-विद्यन्ते (तेसिं) तेपाम्-क्षुद्राणां महालयानां वा (सरिसं) सदृशम्-समानमेंकरूपकमेव 'जे केह खुड्गा पाणा' इत्यादि। शब्दार्थ-'जे केह-ये केचित् जो एकेन्द्रिय आदि 'खुड्गा-क्षुद्रका क्षुद्र लघुकायवाले 'पाणा-प्राणा' प्राणी है 'अदुवा-अथवा' अथवा जो कोई 'महालया-महालया।' घोडा हाथी आदि महाकाय 'संति-सन्ति' पञ्चेन्द्रिय प्राणी है 'तेलि-तेषाम्' उन दोनों की हिमा से 'सरिसं-सहशम्' समान ही वैर होता है । अथवा 'असरिसं-असदृशम्' असमान वेरं-वैरम्' वैर होता है 'त्ति-इति' ऐसा णो वए-नो वदेत्' नहीं कहना चाहिए अर्थात् लघुकाय और महाकाय प्राणिका घात करनेसे समान ही हिंसा होती है, ऐसा एकान्त कथन नहीं करना चाहिए और उनका घात करने पर असमान ही हिंसा होती है, ऐसा एकान्त वचन भी नहीं बोलना चाहिए।गा०६॥ ___अन्वयार्थ--जो एकेन्द्रिय आदि क्षुद्र लघुकायवाले प्राणी हैं अथवा जो कोई अश्वहाथी आदि महाकाय पंचेंद्रिय प्राणी हैं, उन दोनों की 'जे केइ खुड़गा पाणा' याति शहाय-'जे केइ-ये केचित्' रेमेन्द्रिय विमेरे 'खुड्डगा-क्षुद्रका' क्षुद्र सधुयाणा 'पाणा-प्राणा.' प्राणी छे, 'अदुवा-अथवा' 24 ts 'महालया-महालया:' हाथी थे. पिणेरे माय-मोटा शरीरमा 'संतिमन्ति' ५थेन्द्रिय प्राणी छे 'वेसि-तेषाम्' ते मन्नेनी डिसाथी 'सरिसं-सह शम' समान २ थाय छ, अथवा 'असरिसं-असदृशम्' असमान वेरंवेरम' ३२ थाय छे 'त्ति-इति' में प्रभाए ‘णो वए-नो वदेत्' । न જોઈએ અર્થાત્ લઘુકાય અને મહાકાય (નાના મેટા) પ્રાણીને ઘાત કરવાથી સરખી જ હિંસા થાય છે. એ પ્રમાણે એકાત કથન કરવું ન જોઈએ. અને તેને ઘાત કરવાથી અસમાન હિંસા જ થાય છે, એ પ્રમાણે એકાન્ત વચન પણ બોલવું ન જોઈએ ગાવે અન્વયાર્થ-જે એકેન્દ્રિય વિગેરે મુદ્ર લઘુકાયવાળા પ્રાણી છે. અથવા જે ઘેાડા હથી વિગેરે મહાકાય પંચેન્દ્રિય પ્રાણી છે. એ બનેની હિંસાથી

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