Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 706
________________ afari atar fig. यु. अ. ४ प्रत्याख्यान क्रियोपदेशः पावणं' असता मनसा पापकेन - पापरहितेनाऽपि मनसा पाप भरतीति, 'असं' तियाए वईए पात्रियाए' असत्या वाचा पापिकया 'असंतरगं कारणं पात्रणं' असता कायेन पापकेन 'अनंतस' अनतो दिनामकुर्वतः 'अणक्वस्स' अमनकरूप 'अवियारमण यणकायवक कस्म' अविचारमनीवचनकार्यवाक्यस्व 'सुविणमत्रि असो' स्वप्नमपि अपश्यतः- अव्यक्तविज्ञानवतः 'पावे कम्मे कज्जइ पाप कर्म क्रियते - हे नोदक विचाररहित ! यन्मया मतज्ञातं यत्-यथोक्तगुणविशिटान पाप कर्म भवतीति तत्सर्वमपि सत्यमेव नाऽपत्यम् - अपता मनमा अपता वचनेन असा कायेनाऽपि अविचारमनोवाक्कायव्यापारेणापि पापं भवत्येवेत्यभिपायः । पुनः नोदकः पृच्छति - 'तं सम्म कस्स णं तं देऊ' तत्समीचीनं पाप भवत्येवेति कस्य हेतोः । भवदुक्तं सम्यगेव तत्र को हेतुरित्यर्थः, आचार्यः सुधर्म स्वामी आह- 'तत्थ खलु भगवया छम्नीवणिकायहेऊ पणत्ता' तत्र खलु भगवता षड्जीवनिकायहेतवः प्रज्ञताः कथिताः पद्मकारा जीवाः कर्मबन्धनदेवो भव वचन और काय न होनेपर प्राणी का घात न करने वाले, अमनस्क ( मन से रहित ) मन वचन और काय संबंधी विचार से रहित, और अस्पष्ट ज्ञान वाले जीव को भी पापकर्म होता है । आशय यह है कि हे प्रश्नकर्त्ता । मैंने पहले जो कहा है कि पूर्वोक्त प्रकार के जीवों को भी कर्मबन्ध होता है सो सत्य ही है, असत्य नहीं अर्थात् पापमय मन वचन और कोय न होने पर भी एवं मनवचन काय संबंधी विचार न होने पर भी पाप होता है । प्रश्नकर्त्ता पुनः प्रश्न करता है- आपने जो कहा है, उसमें हेतु क्या है ? आचार्य कहते हैं- भगवान् ने छह जीवनिकार्यों को कर्मबन्धका कारण कहा है। वे जीवनिकाय इसप्रकार हैं- पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय વચન અને કાય ન હાવાથી પ્રાણીના ઘાત ન કરવાવાળા, અમનસ્ક, (મન વિનાના) મન, વચન, અને કાય સ`ખધી વિચાર વિનાના અને અસ્પષ્ટ જ્ઞાનવાળા, જીવને પણ પાપકમ હાય છે કહેવાના આશય એ છે કે હુ પ્રશ્ન કરવાવાળા ! મે' પહેલાં જે કહેલ છે, કે-પૂર્વક્તિ પ્રકારના જીવાને પણુ કમબંધ થાય છે, તે સત્ય જ છે. અસત્ય નથી અર્થાત્ પાપમય મન, વચન અને કાય ન હાવા છતાં પણુ અને મન, વચન તથા કાય સ’"ધી વિચાર ન હાવા છતાં પણ પાપ થાય છે. પ્રશ્ન કરનાર ફરીથી પ્રશ્ન કરે છે કે આપે उधु छे, तेभा हेतु शु छे ? આચાય કહે છે કે—ભગવાને છ જીવનિકાયાને કખ ધનુ કાર કહેલ છે તે છવનિકાચે-પૃથ્વીકાયથી લઈને ત્રસકાય સુધીની છે. આ છ

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