Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 754
________________ D समयार्थबोधिनी टीका वि. श्रु. अ. ५ आचारश्रुतनिरूपणम् अन्वयार्थः-साध्वर्थ पट्कायोपमर्दनपूर्वकनिष्पादितमन्नादिकमाधाम कथ्यते तदुपभुञ्जानानां साधूनामाधाकर्मिको दोषो भवतीति सिद्धान्तः, तथापि कथञ्चित् ममादतः (आहाकम्माणि भुजंति) ये साधय आधाकर्माणि भुञ्जते, तान् (अण्णमण्णे सम्मुणा) अन्योऽन्यं स्वमगा (उवलिते त्ति वा) उपलिशानिति वा (पुणो) पुन: (अणुवलित्ते ति वा) अनुपलितानिति वा (गो) नो (जाणिज्जा) जानीयात्-न वदेदिति । आवामिकाहारमोजने कृते सति साधः चिक्कगकर्मणोपलिप्ता भवन्त्येवेत्यपि एकान्तं वचो न वक्तपम् । चिक्कगमगोपलिप्ता न भवन्ति इत्यपि न वक्तव्यमिति । नवमगाथाया अर्थः स्पष्ट एवेति ॥ ८॥९॥ आधार्मिक कहलाता है जो साधु आधार्मिक आहार करता है वे 'अण्णमण्णे-अन्योऽन्यम्' अन्यो अन्य-परस्पर 'सकम्मुणा-स्वकर्मणा' अपने कर्मसे 'उलित्तेत्ति वा-उपलिप्तानितिवा' पापकमसे उपलिप्त न मा (पुणो-पुनः' अथवा 'अणुवलित्तेत्ति वा-अनुपलिप्तानिति वा' अनुपरित होते हैं ऐप्ता एकान्त वचन 'णो जाणिज्जा-न जानीयात' नही कहना चाहिए । अतएव किसी भी एकान्त पक्षको स्वीकार करना अनाचार समझना चाहिए ॥गा. ८॥९॥ अन्वयार्थ--साधु के लिए षट्काय का उपमर्दन करके तैयार किया गया आहार पानी आदि भाषाकर्मिक कहलाता है। जो साध आधा कर्मिक आहार करते हैं, वे पापकर्म से लिप्त होते ही हैं अथवा लिप्त नहीं ही होते, ऐसे दोनों प्रकार के एकान्त वचन नहीं कहना चाहिए। इन दोनों एकान्त स्थानों से व्यवहार नहीं होता। अतएव किसी भी एकान्त पक्ष को स्वीकार करना अनाचार समझना चाहिए ॥८-९॥ आधा उपाय छ २ साधु माधामि मा २ रे छ, तमा 'अण्णमण्णे-अन्योऽन्यम्' ५५२५२ ‘स कम्मुणा-सकर्मणा' पाना माथी उत्तित्ति वाअलिप्तानिति वा' ५५भ थी पति (यात) थाय छे सभ 'पुणो-पुन' या अणुवलित्तेचि वा-अनुलिप्तानिति वा' अनुपलिय छे. मे प्रमाला . . . . 'णो जाणिज्जा-नजानीय त्' । नन तथा पशु સ્વીકાર કરે તે અનાચાર સમજ. ૫૮-લા - સાધુ મટે ષકાયનું ઉપમર્દન કરીને તૈયાર કરવામાં આવેલ વિગેરે બાધાકર્મિક કહેવાય છે જે સાધુ આધાર્મિક આહાર પાપકર્મથી લિપ્ત થાય જ છે. અથવા લિપ્ત થતા નથી, એવા એકાન્ત વચન કહેવા ન જોઈએ આ બેઉ એકાત સ્થાનેથી મૂવી જ કે ઈ પણ એકાન્ત પક્ષને સ્વીકાર કરવો તે .।८-

Loading...

Page Navigation
1 ... 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791