Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ६ आर्द्रकमुनेगौशालकस्य संवादनि० ५७३
अन्धयार्थः-(समणे) श्रमण स्तपस्वी (माहणे वा) माहनो वा-माइन जीवानित्येवं प्रवृत्तिर्यस्य तादृशो महावीरः (लोग) लोकम्-चतुर्दशरज्जात्मकम् (समिच्च) समेत्य-केवलज्ञानेन ज्ञात्वा (नसथावराणं) सस्थावरजीवनाम् (खेमंकरे) क्षेमकर:-कल्याणकारकः (सहस्समज्झे) सहस्रमध्ये अनेन देवाऽसुरादिमध्ये (आइक्खमाणे वि) याचक्षाणोऽपि-धर्ममुपदिशन्नपि (एगंतयं साहय३) एकान्तक साधयति-एकान्तवासमेवाऽनुमवति रागद्वेषरहितत्वात् 'तहच्चे' तथाचः-तथैवपूर्ववदेव अर्चा-लेश्या यस्य तादृशः सर्वदा चित्तटते रेकरूपेगैत्र स्थितत्वादिति ॥४॥ ज्ञान के द्वारा 'लोग-लोक' चौदह रज्जुपमाण लोकको 'समिच्च-समेत्य' जानकर 'तसथावराणं-सस्थावराणों' बल एवं स्थावर जीवों के 'खेमं. करे-क्षेमं करः कल्याणकरने वाले है 'सहस्लमज्झे-अहसमध्ये वे सुरों एवं असरों के मध्य में 'आइक्खमाणोवि-आचक्षाणोऽपि' धर्मोपदेश करते हुवे भी 'एगंतयं साहयइ-एकान्तकं साधयति' एकान्तवासका ही अनुभव करते हैं 'तहच्चे-तथा!' उनकी अची लेश्या सदैव एकरूप रहती है ॥४॥
अन्वयार्थ-श्रमण और माहन (मा-मत, हम मारो, जीवों को, ऐसा उपदेश देने वाले) महावीर केवलज्ञान के द्वारा चतुर्दशरज्जुपरिमाण लोक को जान कर उस और स्थावर जीवों के कल्याणका हैं। वे सुरों और असुरों के मध्य में धर्मोपदेश करते भी एकान्त की ही साधना करते है अर्थात् रागद्वेषरक्षित होने से एकान्तवात का ही अनुभव करते हैं। उनकी अर्चा लेश्या सदैव एकरूप रहती है॥४॥ स्वामी विज्ञान २॥ 'लोग-लोकम्' यौह २४ प्रभाव ने 'सपिच्च-समेत्य' तीन 'तपथावराण-त्रसथावराणाम्' अस मने स्था१२
वानु 'खेमं करे-क्षेम'करः' या ४२वावाणी छे. 'सहस्तमज्झे-सहस्रमध्ये' तेसा । मन असुरशुभाशनी क्या 'आइक्खमाणो वि-आचक्षाणोऽपि धमशन 1441 छत पर 'एगंतयं सायइ-एकान्तक वाधयति' अन्त. वासना २५ भनुभव ४२ छे. 'तहच्चे-तथा' तानी अर्या-अश्या मेशा એક રૂપ જ રહે છે ગા૦૪
અન્વયાર્થ-શ્રમણ અને માહન (માને હા-મારે એને ન મારો એ ઉપદેશ આપવાવ ળા) મહાવીર સ્વામી કેવળજ્ઞાન દ્વારા ચૌદ રાજ પ્રમાણ વાળા લોકને જાણીને ત્રસ અને સ્થાવર જીવોના કલ્યાણ કરવાવાળા છે. તેઓ સ અને અસુરની મધ્યમાં ઉપદેશ કરતા હોવા છતાં પણ એકાતની જ સાધના કરે છે. અર્થાત્ રાગદ્વેષ રહિત હોવાથી એકાતવાસનો જ અનુભવ धरे छ. तयानी भयो वश्या सह ४३५०५ २३ छ, ॥४॥