Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सार्थबोधिनी टीका द्वि. थु. अ. ५ ओवारश्रुतनिरूपणं
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वा देव्यो वा सन्त्येवायमेन श्रेयान् विचारः सर्वदा करणीयः । अनुमानाऽऽगमाभ्यां प्रमाणभूताभ्यामेतेषामस्तित्व सद्भावात् | २४||
मूलम् - रिथ सिद्धी असिद्धी वा, जैवं सन्नं लिए । अस्थि सिद्धी सिद्धी वा एवं सन्नं णिवेसए ||२५|| छाया - नास्ति सिद्धिरसिद्धिर्वा नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति सिद्धिरसिद्धिर्वा एवं संज्ञां निवेशयेत् ॥२५॥
विचार करना चाहिए | प्रमाणभूत अनुमान और आगम से उन का अस्ति स्व सिद्ध है। कोई कोई पुत्रशाली जीव उन्हें स्वप्न में देखते भी हैं ||२४|| 'णत्थि सिद्धी असिद्धी वा' इत्यादि ।
शब्दार्थ - 'सिद्धी णत्थि - नास्ति सिद्धि:' सिद्धि - (समस्त कर्मों का रूप नहीं है और 'असिद्धी वा असिद्धी व असिद्धि भी नहीं है 'णेवं सन्नं निवेस्सए-नैवं संज्ञां निवेशयेत्' ऐसा विचार करना योग्य नहीं है, किन्तु 'अस्थि सिद्धी असिद्धी वा-अस्ति सिद्धिरसिद्धि af' सिद्धि है, और असिद्धि भी है ' एवं सन्नं निवेसए - एवं संज्ञां निवेशयेत' ऐसा विचार करना चाहिए || २५॥
अन्वयार्थ - सिद्धि (समस्त कर्मो का क्षयस्वरूप) नहीं है और असिद्धि भी नहीं है, ऐसा विचार करना योग्य नहीं है, किन्तु सिद्धि है और असिद्धि भी है, ऐसा विचार करना चाहिए ||२५||
છે, પ્રમાણભૂત અનુમાન અને આગમથી તેનુ અસ્તિત્વ સિદ્ધ થાય છે. કાઈ કોઈ પુણ્યશાળી જીવ તેને સ્વમમાં પણ દેખે છે. ારકા
' णत्थि सिद्धी असिद्धी वा' त्यिाहि
शब्दार्थ -- सिद्धी णत्थि - नास्ति सिद्धिः सिद्धी (सघणा भेना क्षयनाश ३५) नथी. भने 'असिद्धी व असिद्धि वा' असिद्धि पशु नथी. 'णेव सन्न' निवेसए - नैत्रं संज्ञां नित्रशयेत्' मा प्रभानो विचार व योग्य नथी. परंतु 'अत्थि सिद्धी असिद्धी वा-अस्ति सिद्धिरसिद्धि र्वा' सिद्धि छे भने असिद्धि पशु छे, ' एवं सन्न निवेस - एवं स ज्ञां निवेशयेत्' मा प्रभानो विचार ४२ ले २५ અન્વયા ——સિદ્ધિ (સમસ્ત કર્મના ક્ષય રૂપ) નથી અને અસિદ્ધિ પશુ નથી, એવા વિચાર કરવે! ચેાગ્ય નથી. પરતુ સિદ્ધિ છે. અને અસિદ્ધિ પણ છે એવા વિચાર કરવા જોઈએ. ઘરમા