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असंग]
[अश्वघोष
'अलंकार मीमांसा' नामक शोध प्रबन्ध में हिन्दी अनुवाद के साथ । ५. अलंकार सर्वस्व का हिन्दी अनुवाद डॉ० रामचन्द्र-द्विवेदी ने किया है जो संजीवनी टीका के साथ प्रकाशित है। ६. हिन्दी अनुवाद पं० रेवाप्रसाद त्रिवेदी द्वारा चौखम्बा विद्याभवन से प्रकाशित । __ आधार-ग्रन्थ-१. अलंकार-मीमांसा-डॉ० रामचन्द्र द्विवेदी २. संस्कृत काव्य. शास्त्र का इतिहास-डॉ० काणे।
असंग-आर्य असंग प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक वसुबन्धु के ज्येष्ठभ्राता थे । दे० वसुबन्धु । इनका समय तृतीय शताब्दी का अन्त एवं चतुर्थ शताब्दी का मध्य है। ये योगाचार सम्प्रदाय (दे० बौद्धदर्शन ) के विख्यात आचार्य थे। इनके गुरु का नाम आर्य मैत्रेय था। समुद्रगुप्त के समय में ये विद्यमान थे। इनके ग्रन्थ चीनी भाषा में अनूदित हैं, उनके संस्कृत रूप का पता नहीं चलता। ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है-१. महायान संपरिग्रह- इसमें अत्यन्त संक्षेप में महायान के सिद्धान्तों का विवेचन है। चीनी भाषा में इसके तीन अनुवाद प्राप्त होते हैं। २. प्रकरण आर्यवाचा--यह ग्रन्थ ग्यारह परिच्छेदों में विभक्त है। इसका प्रतिपाद्य है योगाचार का व्यावहारिक एवं नैतिक पक्ष । ह्वेनसाङ्ग कृत चीनी अनुवाद उपलब्ध है। ३. योगाचार भूमिशास्त्र-यह अत्यन्त विशालकाय ग्रन्थ है जिसमें योगाचार के साधन मार्ग का विवेचन है। सम्पूर्ण ग्रन्थ अपने मूल रूप में हस्तलेखों ( संस्कृत में ) में प्राप्त है। राहुल जी ने इसका मूल हस्तलेख प्राप्त किया था । इसका छोटा अंश (संस्कृत में) प्रकाशित भी हो चुका है। इसमें १७ भूमि या परिच्छेद हैं-विज्ञानभूमि, मनोभूमि, सवितर्कसविचाराभूमि, अवितर्कविचारमात्राभूमि, अवितर्कअविचाराभूमि, समाहिताभूमि, असमाहिताभूमि, सचित्तकाभूमि, अचित्तकाभूमि, श्रुतमयीभूमि, चिन्तामयीभूमि, भावनामयीभूमि, श्रावकभूमि, प्रत्येकबुद्धभूमि, बोधिसत्त्वभूमि, सोपधिकाभूमि, निरुपधिकाभूमि ।
आधारग्रन्थ- १. बौद्ध-दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय ।
अश्वघोष–महाकवि अश्वघोष संस्कृत के बौद्ध कवि हैं। इनकी रचना का प्रधान उद्देश्य है बौद्धधर्म के विचारों का, काव्य के परिवेश में प्रस्तुत कर, जनसाधारण के बीच प्रचार करना । संस्कृत के अन्यान्य कवियों की भांति इनका जीवनवृत्त अधिक विवादास्पद नहीं है। ये प्रसिद्ध सम्राट कनिष्क के समसामयिक थे । कनिष्क ७८ ई० के आसपास गद्दी पर बैठा था, अतः अश्वघोष का भी यही स्थितिकाल है। बौद्धधर्म के ग्रन्थों में ली अनेक ऐसे तथ्य उपलब्ध होते हैं जिनके अनुसार अश्वघोष कनिष्क के समकालीन सिद्ध होते हैं। चीनी परम्परा के अनुसार अश्वघोष बौद्धों की चतुर्थ संगीति या महासभा में विद्यमान थे। यह सभा काश्मीर के कुण्डलवन में कनिष्क द्वारा बुलाई गयी थी। अश्वघोष को कनिष्क का समकालीन सिद्ध करने के लिए अनेक अन्तःसाक्ष्य भी हैं-- ___क-अश्वघोषकृत 'बुद्धचरित' का चीनी अनुवाद ईसा की पांचवीं शताब्दी का उपलब्ध होता है। इससे विदित होता है कि भारत में पर्याप्तरूपेण प्रचारित होने के बाद ही इसका चीनी अनुवाद हुआ होगा।
३स० सा०