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[ अमरुक
अमरचन्द्रसूरि ]
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वृत्ति' में अमरचन्द्र ने अपने कई ग्रन्थों का उल्लेख किया है । वे हैं - छन्दोरत्नावली, काव्यकल्पलतापरिमल, अलंकारप्रबोध । इन्होंने 'जिनेन्द्रचरित' नामक काव्यग्रन्थ की भी रचना की है जिसे 'पद्मानन्द' भी कहा जाता है । अमरसिंह के पिता लावण्यसिंह भी कवि थे । इन्होंने गुजरात के धोलकर राज्य के राणा धीरधवल के मन्त्री वस्तुपाल जैन की प्रशस्ति में 'सुहृत्सङ्कीर्तन' नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया था । आधार-ग्रन्थ - भारतीय साहित्यशास्त्र भाग १ - आ० बलदेव उपाध्याय । अमरचन्द्रसूरि-ये प्रसिद्ध जैन कवि हैं । इनका रचनाकाल १२४१ से १२६० ई० है । इन्होंने 'बालभारत' नामक महाकाव्य की रचना की है, जिसमें ४४ सर्ग एवं ६९५० श्लोक । इसमें 'महाभारत' को कथा संक्षेप में वर्णित है । इसकी भाषा सरल तथा वैदर्भीरीति समन्वित है । इन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की है । 'कविकल्पलता' ( काव्यशिक्षा विषयक ग्रन्थ ), 'छन्दोरत्नावली', 'स्याद्शब्द- समुच्चय', 'पद्मानन्द' ( काव्य ) आदि इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं । 'बालभारत' में एक स्थल पर वेणी की तुलना तलवार से करने के कारण ये 'देणी-कृपाण-अमर' के नाम से 'तत्कालीन कवि-गोष्ठी में प्रसिद्ध हुए थे । अमरचन्द्रसूरि जिनदत्तसूरि के शिष्य तथा अणहिलपट्टन के राजा वीसलदेव के सभा - पण्डित थे । इन्होंने 'पद्मानन्द' काव्य का प्रणयन पट्टन के बनिया कोष्टागारिक के आग्रह पर किया था ।
अमरुक – ये संस्कृत के प्रसिद्ध श्रृंगारी कवि हैं जिन्होंने 'अमरुकशतक' नामक शृंगार मुक्तक की रचना की है। इसमें एक सौ से ऊपर पद्य हैं । इनका शतक, हस्तलेखों में, विभिन्न दशाओं में प्राप्त होता है, तथा इसमें श्लोकों की संख्या ९० से ११५ तक मिलती है । इसके ५१ श्लोक ऐसे हैं जो समानरूप से सभी प्रतियों में प्राप्त होते हैं, किन्तु उनके क्रम में अन्तर दिखाई पड़ता है । कतिपय विद्वानों ने केवल शार्दूलविक्रीडित छन्दवाले श्लोकों को ही अमरुक की मूल रचना मानने का विचार व्यक्त किया है, किन्तु इस सुझाव से केवल ६१ ही पद्य रहते हैं और शतक पूरा नहीं होता । कुछ विद्वान् 'अमरुकशतक' के प्राचीनतम टीकाकार अर्जुनवमदेव ( समय १२१५ ई० के लगभग ) के अभिस्वीकृत पाठ को ही प्रामाणिक मानने के पक्ष में हैं, पर इस सम्बन्ध में अभी निश्चितता नहीं आने पायी है ।
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अमरुक के जीवनवृत्त के सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञात नहीं होता और न इनका समय ही निश्चित होता है । ध्वन्यालोककार आनन्दवर्द्धन ने ( ९५० ई० ) अत्यन्त आदर के साथ इनके मुक्तकों की प्रशंसा कर उन्हें अपने ग्रन्थ में स्थान दिया है ।
मुक्तकेषु हि प्रबन्धेष्विव रसबन्धाभिनिवेशिनः कवयो दृश्यन्ते । तथा अमरुकस्य कवे मुक्तकाः शृंगारस्यन्दिनः प्रबन्धायमानाः प्रसिद्धा एव ।" - ध्वन्यालोक
आनन्दवर्द्धन से पूर्व वामन ने भी अमरुक के तीन श्लोकों को बिना नाम दिये ही, उद्धृत किया है ( ८०० ई० ) । इस प्रकार इनका समय ७५० ई० के पूर्व निश्चित होता है | अर्जुनवर्मदेव ने अपनी टीका 'रसिकसञ्जीवनी' में 'अमरुकशतक' के पद्यों का पर्याप्त सौन्दर्योद्घाटन किया है । इसके अतिरिक्त वेमभूपाल रचित 'शृङ्गार