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१४ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचितइत्यादि अर्थसहित अनेक नाम हैं; ऐसा तौ देव जाननां । बहुरि गुरु भी अर्थ थकी विचाीरये तो अरहंत देवही है जानैं मोक्षमार्गका उपदेश करनहारा अरहंतही है साक्षात् मोक्षमार्ग यहही प्रवर्तीवै है, बहुरि अरहंतकै पीछे छद्मस्थ ज्ञानके धारक तिनिहीका निग्रंथ दिगंबर रूप धारनेवाले मुनि हैं ते गुरु हैं जातें अरहंतका एकदेशशुद्धपणां सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रका तिनिकै पाइये सोही संवर निर्जरा मोक्षके कारण हैं तातें अरहंतकी ज्यों एकदेशपणे निर्दोष हैं ते मुनि भी गुरु हैं, मोक्षमार्गके उपदेश करनहारे हैं । बहुरि ऐसा मुनिपणां सामान्यकरि एकप्रकार है, बहुरि विशेषकरि सो ही तीन प्रकार है-आचार्य, उपाध्याय, साधु । ऐसे यह पदवीका विशेष है, तिनिकै मुनिपणांकी क्रिया एकही है, बाह्य लिंग भी समान है, पंच महाव्रत पंच समिति तीन गुप्ति ऐसैं तेरह प्रकारका चारित्र भी समानही है, तप भी शक्तिसारू समानही है, साम्यभाव भी समान है, मूलगुण उत्तरगुण भी समान हैं, परीषह उपसर्गनिका सहना भी समान है, आहार आदिकी विधि भी समान है, चर्या स्थान आसन आदि भी समान हैं, मोक्षमार्गका साधनां सम्यक्त्व ज्ञान चारित्र भी समान हैं । ध्याता ध्यान ध्येयपणां भी समान है, ज्ञाता ज्ञान ज्ञेयपणां भी समान है, च्यार आराधनांका आराधना क्रोधादिक कषायनिका जीतनां इत्यादि मुनिनिकी प्रवृत्ति है सो सर्व समान है। इहां विशेष यहु है-जो आचार्य है सो तौ पंच आचार अन्यकू अंगीकार करावै है, बहुरि अन्यकू दोष लागै ताका प्रायश्चित्तकी विधि बतावै है, धर्मोपदेश दीक्षा शिक्षा दे सो तौ आचार्य होय है सो ऐसा आचार्य गुरु वंदने योग्य है । बहुरि उपाध्याय है सो वादित्व वाग्मित्व कवित्व गमकत्व ये च्यार विद्या हैं तिनिमैं प्रवीण होय हैं, इस विर्षे शास्त्रका अभ्यास प्रधान कारण है आप शास्त्र पढ़े अन्यकू पढ़ावै, ऐसा उपाध्याय गुरु बंदने