________________
८४ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचितन करी निर्भय होय छींकेकी लड़ काटि मंत्र सिद्ध किया । बहुरि निःकांक्षितका सीता अनंतमती सुतारा आदिका उदाहरण है जिनि. भोगनिकै अर्थि धर्म न छोड्या । बहुरि निर्विचिकित्साका उद्दायनराजाका उदाहरण है जानै मुनिका शरीर अपवित्र दोखि ग्लानि न करी । बहुरि अमूढदृष्टीका रेवतीराणीका उदाहरण है जानैं विद्याधर अनेक महिमा दिखाई तौऊ श्रद्धान” शिथिल न भई। बहुरि उपगृहनका जिनेंद्रभक्तसेठका उदाहरण है जा चोर ब्रह्मचर्यभेषकरि छत्र चोऱ्या ताकू ब्रह्मचर्यपदकी निंदा होती जानि ताका दोष छिपाया । बहुरि स्थितीकरणका वारिषेणका उदाहरण है जानै पुष्पदंत ब्राह्मणकू सुनिपदतै शिथिल भया जानि दृढ किया । बहुरि वात्सल्यका विष्णुकुमारका उदाहरण है जानें अकंपन आदि मुनिनिका उपसर्ग निवारण किया । बहुरि प्रभावना विर्षे वज्रकुमार मुनिका उदाहरण है जाने विद्याधरका सहाय पाय धर्म की प्रभावना करी । ऐसें आठ अंग प्रगट भये सम्यक्त्वचरण चारित्र संभव है जैसैं शरीरमैं हाथ पग होंय तैसैं सम्यक्त्वके अंग है, ये न होंय तौ विकलांग होय ॥ ७ ॥ _ आज कहै है जो ऐसैं पहला सम्यक्त्वाचरण चारित्र होय है,गाथा-तं चेव गुणविसुद्धं जिणसम्मत्तं सुमुक्खठाणाय ।
जं चरइ णाणजुत्तं पढमं सम्मत्तचरणचारित्तं ॥ ८ ॥ संस्कृत- तच्चैव गुणविशुद्धं जिनसम्यक्त्वं सुमोक्षस्थानाय ।
तत् चरति ज्ञानयुक्तं प्रथमं सम्यक्त्वचरणचारित्रम्॥८॥ अर्थ-तत् कहिये सो जिनसम्यक्त्व कहिये अरहंत जिनदेवकी श्रद्धा निःशकित आदि गुणनिकरि विशुद्ध होय ताहि यथार्थज्ञान करि सहित आचरण करै सो प्रथम सम्यक्त्वचरणचारित्र है सो मोक्षस्थानकै अर्थि होय है ॥