Book Title: Ashtpahud
Author(s): Jaychandra Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 391
________________ ३४८ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित___ अर्थ—मोक्षमार्गका लिंग भेष ऐसा है यथाजातरूप तौ जाका रूप है, बाह्य परिग्रह वस्त्रादिक किचित्मात्रभी जा. नांही है; बहुरि सुसंयत कहिये सम्यक्प्रकार इन्द्रियनिका निग्रह अर जीवनिकी दया जामैं पाइये ऐसा संयम है; बहुरि सर्वसंग कहिये सर्वही परिग्रह तथा सर्व लौकिक जननिकी संगतिते रहित है; बहुरि जामैं परकी अपेक्षा कछू नाही है मोक्षके प्रयोजन सिवाय अन्य प्रयोजनकी अपेक्षा नाही है । ऐसा मोक्षमार्गका लिंग मानै श्रद्धै तिस जीवकै सम्यक्त्व होय है ॥ ___ भावार्थ--मोक्षमार्गमैं ऐसाही लिंग है, अन्य अनेक भेष हैं ते मोक्षमार्गमैं नाही हैं ऐसा श्रद्धान करे ताकै सम्यक्त्व होय है । इहां परापेक्ष नाही-ऐसा कहनें जनाया है जो-ऐसा निग्रंथ रूप भी जो काहू अन्य आशयतें धारै तौ वह भेष मोक्षमार्ग नाही; केवल मोक्षहीकी अपेक्षा जामैं होय ऐसा होय ताळू माने सो सम्यग्दृष्टी है ऐसा जाननां ॥९१ ।। आ. मिथ्यादृष्टीके चिह्न कहै हैं;गाथा-कुच्छियदेवं धम्मं कुच्छियलिंगं च बंदए जो दु । लज्जाभयगारवदो मिच्छादिट्ठी हवे सो हु ॥९२॥ संस्कृत-कुत्सितदेवं धर्म कुत्सितलिंगं च वन्दते यः तु । लज्जाभयगारवतः मिथ्यादृष्टिः भवेत् सः स्फुटम् ९२ . अर्थ-कुत्सित देव जो क्षुधादिक अर रागद्वेषादि दोषनिकरि दूपित होय सो, अर कुत्सित धर्म जो हिंसादि दोषनिकरि सहित होय सो, कुत्सितलिंग जो परिग्रहादिकरि सहित होय सो, इनिळू जो बंदै पूजै सो तो प्रगट मिथ्यादृष्टी है । इहां विशेष कहै है जो भले हितकरनेवाले मानिकरि वंदै पूजै सो तौ प्रगट मिथ्यादृष्टी है, परन्तु जो लज्जा भय गारव इनि कारणनि करि भी बंदै पूजै सो भी प्रगट मिथ्यादृष्टी है। तहां लज्जा तौ ऐसैं-जो लोक इनिळू बंदै पूजै है हम नाही पूर्जेंगे तो

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