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अष्टपाहुडमें शीगपाहुडकी भाषावचनिका । ३९३
मैं कहै है जो उन्मार्गके प्ररूपण करनेवाले कुमतकुशास्त्रकी जे प्रशंसा करैं हैं ते बहुत शास्त्र जानैं हैं तौऊ शीलत्रतज्ञानकरि रहित तिनिकै आराधना नांही;
गाथा - कुमकुसुदपसंसा जाणंता बहुविहाई सत्थाई |
सीलदारहदा हु ते आराधया होंति ॥१४॥ संस्कृत- कुमतकुश्रुतप्रशंसकाः जानतो बहुविधानि शास्त्राणि । शीलवतज्ञानरहिता न स्फुटं ते आराधका भवति ॥ १४ ॥ अर्थ — जे बहुत प्रकार शास्त्रानिकूं जानते संते हैं अर कुमत कुशाके प्रशंसा करनेवाले हैं ते शील अर व्रत अर ज्ञान इनिकरि रहित हैं ते इनका आराधक नांही हैं ॥
भावार्थ — जे बहुत शास्त्रनिकूं जानि ज्ञान तौ बहुत जानें हैं अर कुमत कुशास्त्रनिकी प्रशंसा करे हैं तो जानिये याकै कुमतसूं अर कुशासूं राग है प्रीति है तब तिनिकी प्रशंसा करे है - तो ये तौ मिथ्यात्वके चिह्न हैं, अर जहां मिथ्यात्व है तहां ज्ञान भी मिथ्या है अर विषयकषायनितैं रहित होय ताकूं शील कहिये सो भी ताकै नांही है, अर व्रत भी ताकै नांही है, कदाचित् कौऊ व्रताचरण करै है तौऊ मिध्याचारित्ररूप है; तातैं सो दर्शन ज्ञान चारित्रका आराधनेवाला नांही है, मिथ्यादृष्टी है ॥१४॥
आगैं कहै है जो रूपसुंदरादिक सामग्री पावै अर शील रहित होय - तौताका मनुष्यजन्म निरर्थक है; -
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गाथा - रूवसिरिगव्विदाणं जुव्वणलावण्णकंतिकलिदाणं । सीलगुणवज्जिदाणं णिरत्थयं माणुस जम्म ॥ १५ ॥ संस्कृत - रूपश्रीगर्वितानां यौवनलावण्यकांतिकलितानाम् । शीलगुणवर्जितानां निरर्थकं मानुषं जन्म ॥ १५ ॥