Book Title: Ashtpahud
Author(s): Jaychandra Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 443
________________ ४०० पंडित जयचंद्रची छावड़ा विरचित भावार्थ-जो ज्ञानी तप शीलसहित हैं तिनिकै इंद्रियनिके विषय खलकोज्यौं हैं जैसे सांठनिका रस काढिले तब खल चूंसे नीरस होय तब डारि देने योग्यही होय तैसैं विषयनिकू जाननां, रस था सो तौ ज्ञानीनिनैं जानि लिया तब विषयतौ खलवत् रहे तिनिके त्यागर्नेमैं कहा हानि ? कछू भी नाही । धन्य हैं वे ज्ञानी–जिनि. विषयनिकू ज्ञेयमात्र जानि आसक्त न होय हैं। अर जे आसक्त होय हैं ते तो अज्ञानी ही हैं जातै विषय हैं ते तौ जडपदार्थ हैं सुख तौ तिनिके जाननें से ज्ञानमैं ही था, अज्ञानी आसक्त होय विषयनिमैं सुख मान्या जैसैं श्वान सूखा हाड चावै तब हाडकी अणी मुख तालवामैं चुभै तब तालवा फाटि तामैंसू रुधिर स्त्रवै तब अज्ञानी श्वान जाणें जो यह रस हाडमैसूं नीसऱ्या है तब तिस हाडिकू फेरि फेरि चावै अर सुख मानै तैसैं अज्ञानी विषयनिमैं सुख मानि फेरि फेरि भोगवै है, अर ज्ञानीनिनैं अपने ज्ञानहीमैं सुख जान्या है तिनिकै विषयनिके छोडनेंमैं खेद नांही है, ऐसैं जाननां ॥ २४॥ आगैं कहै है जो प्राणी शरीरके अवयव सर्व सुन्दर पावै तौऊ सर्व अंगनिमैं शील है सो ही उत्तम है;गाथा-बट्टेसु य खंडेसु य भद्देसु य विसालेसु अंगेसु । अंगेसु य पप्पेसु य सव्वेसु य उत्तमं सीलं ॥२५॥ संस्कृत-वृत्तेषु च खंडेषु च भद्रेषु च विशालेषु अंगेषु । अंगेषु च प्राप्तेषु च सर्वेषु च उत्तमं शीलं ॥२५॥ ___ अर्थ—प्राणीके देहविर्षे केई अंग तौ वृत्त कहिये गोल सुघट सराहने योग्य होय है, केई अंग खंड कहिये अर्द्धगोल सारिखे सराहनयोग्य होय हैं, केई अंग भद्र कहिये सरल सूधे सराहनेयोग्य होय हैं, अर केई अंग विशाल कहिये विस्तीर्ण चौडे सराहनेयोग्य होय हैं-ऐसैं सर्वही

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