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५० पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचितसप्त तत्व नव पदार्थनिका वर्णन है याके छिनवै लाख पद हैं । बहुरि तीजा वीर्यानुवादनाम पूर्व है याविर्षे षट्र द्रव्यनिकी शक्तिरूप वीर्यका वर्णन है याके पद सत्तीर लाख हैं । बहुरि चौथा अस्तिनास्ति प्रवादनामा पूर्व है या विर्षे जीवादिक वस्तुका स्वरूप द्रव्य क्षेत्र काल भावकी अपेक्षा अस्ति पररूप द्रव्य क्षेत्र काल भावकी अपेक्षा नास्ति आदि अनेक धर्मनिवि विधि निषेध करि सप्तभंगकरि कथंचित् विरोध मेटनें रूप मुख्य गौण करि वर्णन है याके पद साठि लाख हैं । बहुरि ज्ञानप्रवादनामा पांचमां पूर्व है यामैं ज्ञानके भेदनिका स्वरूप संख्या विषय फल आदिका वर्णन है याके पद एक घाटि कोडि हैं । बहुरि छठा सत्यप्रवादनामा पूर्व है या विर्षे सत्य असत्य आदिक वचननिकी अनेक प्रकार प्रवृत्ति है ताका वर्णन है याके पद एक कोडि छह हैं । बहुरि सातमां आत्मप्रवादनामा पूर्व है याविर्षे आत्मा जो जीव पदार्थ है ताका कर्ता भोक्ता आदि अनेक धर्मनिका निश्चय व्यवहार नय अपेक्षा वर्णन है याके पद छव्वीस कोडि हैं । बहुरि कर्मप्रवाद नामा आठमा पूर्व है याविर्षे ज्ञानावरण आदि आठ कर्मनिका बंध सत्व उदय उदीरणपणा आदिका तथा क्रियारूप कर्मनिका वर्णन है याके पद एक कोडि अस्सी लाख हैं। बहुरि प्रत्याख्याननामा नवमां पूर्व है यामैं पापके त्यागका अनेक प्रकार करि वर्णन है याके पद चौरासी लाख हैं। बहुरि दशमां विद्यानुवादनामा पूर्व है यामैं सातसै क्षुद्रविद्या अर पांचसै महाविद्या इनिका स्वरूप साधन मंत्रादिक अर सिद्ध भये इनिका फलका वर्णन है तथा अष्टांग निमित्त ज्ञानका वर्णन है याके पदः एक कोडि दश लाख हैं बहुरि कल्याणवादनामा ग्यारवां पूर्व है यामैं तीर्थकर चक्रवर्ती आदिके गर्भ आदिकल्याणका उत्सव तथा तिसके कारण षोडश भावनादिके तपश्चरणादिक तथा चन्द्रमा सूर्या