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पंडित जयचंदजी छावड़ा विरचितत्याग कहने जिनि वस्तुनिमैं साक्षात् त्रस दी ते सर्वही वस्तु भक्षण नही करै ! देवादिक निमित्त तथा औषधादिकनिमित्त इत्यादि कारणनितें दीखता त्रस जीवनिका घात न करे, ऐसा आशय है, सो यामैं तौ अहिंसा अणुव्रत आया । अर सात व्यसनके त्यागमैं झूठका अर चोरीका अर परस्त्रीका त्याग आया अर व्यसनहीके त्यागमैं अन्याय परधन परस्त्रीका ग्रहण नाही, यामैं अतिलोभका त्यागतें परिग्रहका घटावनां आया, ऐसैं पांच अणुव्रत आचैं हैं । इनिके अतीचार टलै नांही तातै अणुव्रती नाम न पावै । ऐसैं दर्शन प्रतिमाका धारकभी अणुव्रती है तातें देशविरत सागारसंयमचरण चारित्रमैं याकूभी गिण्या है ॥ २३ ॥ ___ आगें पांच अणुव्रतका स्वरूप कहै है;गाथा-थूले तसकायवहे थूले मोषे अदत्तथूले य ।
परिहारो परमहिला परग्गहारंभ परिमाणं ॥ २४ ॥ संस्कृत-स्थूले त्रसकायवधे स्थूलायां मृषायां अदत्तस्थूले च ।
परिहारः परमहिलायां परिग्रहारंमपरिमाणम् ॥२४॥ अर्थ-थूल जो त्रसकायका घात, थूलमृशा कहिये असत्य, थूल अदत्ता कहिये परका न दिया धन, परमहिला कहिये परकी स्त्री इनिका तौ परिहार कहिये त्याग; बहुरि परिग्रह अर आरंभ का परिमाण ऐसैं पांच अणुव्रत हैं । ___ भावार्थ-इहां थूल कहनेमैं ऐसा अर्थ जाननां-जामैं अपनां मरण होय परका मरण होय अपनां घर विगडै परका घर विगडै राजका दंडयोग्य होय पंचनिकै दंडयोग्य होय ऐसैं मोटे अन्यायरूप पापकार्य जाननें,
१ मुद्रित सटीकसंस्कृतप्रतिमें ‘अदत्तथूले' के स्थान में 'तितेक्खथूले ' ऐसा पाठ है तथा 'परमहिला' इसके स्थान में 'परमपिम्मे' ऐसा पाठ है।