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१७४ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित
भावार्थ-जन्म जन्म विर्षे अन्य अन्य माताके स्तनका दूध एता पीया ताकू एकत्र कीजिये तो समुद्रके जल भी अतिशयकरि अधिक होय, इहां अतिशयका अर्थ अनंतगुणां जाननां जाते अनंतकालका एकत्रित किया अनंतगुणां होय ॥ १८ ॥
आगै फेरि कहै है जो जन्म लेकरि मरण किया तब माताका रुदनका अश्रुपातका जलभी एता भया;गाथा-तुह मरणे दुक्खेण अण्णण्णाणं अणेयजणणीणं ।
. रुग्णाग णयगणीरं सायरसलिलाहु अहिययरं ॥१९॥ संस्कृत-तव मरणे दुःखेन अन्यासामन्यासां अनेकजननीनाम्।
रुदितानां नयननीरं सागरसलिलात् अधिकतरम् १९ अर्थ-हे मुने ! तँ माताका गर्भमैं वसि जन्म लेकरि मरण किया सो तेरे मरण करि अम्य अन्य जन्मविौं अन्य अन्य माताका रुदन” नयननिका नीर एकत्र कीजिये तब समुद्रके जलतेंभी अतिशय करि अधिकगुणा होय. अनंतगुणा होय ॥ ___ आफेरि कहै है जो संसारमैं जन्म लीए तिनिमैं केश नख नाल कटे तिनिका पुंज कीजिये तो मेरुतै अधिकराशि होय;गाथा-भवसायरे अणंते छिण्णुज्झिय केसणहरणालही।
जइ जइको विजए हवदि य गिरिसमधिया रासी॥ संस्कृत-भवसागरे अनंते छिन्नोज्झितानि केशनखरनालास्थीनि।
पुंजयति यदि कोऽपि देवः भवति च गिरिसमधिकाराशिः अर्थ-हे मुने ! या अनंत संसार सागरमैं तें जन्म लिये तिनिमैं केश नख नाल अस्थि कटे टूटे तिनिका जो कोई देव पुंज करै तौ मेरु गिरिरौं भी अधिक राशि होय अनंतगुणा होय ॥ २० ॥