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अष्टपाहुडमें मोक्षपाहुडकी भाषावचनिका ।
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___ आगैं कहै है जो-.ऐसा सम्यग्दर्शनका ग्रहणका उपदेश सार है ताकू जो मानें है सो सम्यत्क्व है;---- गाथा-इय उवएसं सारं जरमरणहरं खु मण्णए जं तु ।
तं सम्मत्तं भणियं सवणाणं सावयाणं पि ॥४०॥ संस्कृत-इति उपदेशं सारं जरामरणहरं स्फुटं मन्यते यत्तु ।
तत् सम्यक्त्वं भणितं श्रमणानां श्रावकाणामपि ॥४०॥ अर्थ-इति कहिये ऐसा सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रका उपदेश है सो - सार है जरा मरणका हरणेवाला है तहां याकू जो मानैं है श्रद्धै है सो ही सम्यक्त्व कह्या है सो मुनिनिकू तथा श्रावकनिकू सर्वही• कया है तारौं सम्यक्त्वपूर्वक ज्ञान चारित्रकू अंगीकार करौ।। .. भावार्थ-जीवके जे ते भाव हैं तिनिमैं सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र सार हैं उत्तम हैं जीवके हित हैं, बहुरि तिनिमैं भी सम्यग्दर्शनः प्रधान हैं जातें याबिना ज्ञान चारित्रभी मिथ्या कहावै है तातें सम्यग्दर्शनकू प्रधान जांणि पहलैं अंगीकार करना, यह उपदेश मुनि तथा श्रावक सबहीकू है ॥ ४०॥ ___ आगें सम्यग्ज्ञानका स्वरूप कहै है;-- गाथा-जीवाजीवविहत्ती जोई जाणेइ जिणवरमएण ।
तं सण्णाणं भणियं अवियत्थं सव्वदरसीहिं ॥४१॥ संस्कृत-जीवाजीवविभक्ति योगी जानाति जिनवरमतेन ।
तत् संज्ञानं भणितं अवितथं सर्वदार्शभिः ॥४१॥ __ अर्थ-जो योगी मुनि जीव अजीव पदार्थका भेद जिनवरके मतकरि जाण है सो सम्यग्ज्ञान सर्वदर्शी सर्वका देखनेवाला सर्वज्ञदेव. कह्या है सो ही सत्यार्थ है, अन्य छद्मस्थका कह्या सत्यार्थ नाही असत्यार्थ है, सर्वज्ञका कह्या ही सत्यार्थ है।