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अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका ।
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बहुरि सशल्यमरण दोय प्रकार- -तहां मिथ्यादर्शन माया निदान ये तीन शल्य तौ भावशल्य है, अर पंच स्थावर अर त्रसमैं अरौंनी ये द्रव्यशल्यसहित हैं ऐसैं सशल्यमरण है ॥ ९ ॥
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बहुरि जो प्रशस्तक्रियाविषै आलसी हौय व्रतादिविषै शक्तिकूं छिपा घ्यानादिकर्ते दूरि भागैं ऐसाकामरण सो पलाय मरण है ॥ १० ॥
वंशात मरण च्यार प्रकार है— सो आर्तरौद्र ध्यानसहित मरण है तहाँ पांच इंद्रियनि विषयनिविषै रागद्वेषसहित मरण सो इन्द्रियवशात्तं मरण हैं; साता असाताकी वेदनासहित मेरै सो वेदनाशावर्त्तमरण है, क्रोध मान माया लोभ कषायके वशर्तें मेरै सो कषायवशार्त्तमरण है, हास्य बिनोद कषायके वशर्तें मेरे सो नोकषायवशार्तमरण है ॥ ११ ॥
बहुरि जो अपना व्रत क्रिया चारित्रविषै उपसर्ग आवै सो कह्याभी जाय अर भ्रष्ट होनेंका भय आवै तब अशक्त भया अन्नपानीका त्यागकर मेरे सो विप्राणसमरण है ॥ १२ ॥
बहुरि जी शस्त्रग्रहणकरि मरण होय सो गृध्रपृष्ठमरण है ॥ १३ ॥ बहुरि जो अनुक्रमसूं अन्नपानीका यथाविधि त्यागकर मरै सो भक्तप्रत्याख्यान मरण है ॥ १४ ॥
बहुरि जो संन्यास करै अर अन्यपास वैयावृत्त्य करात्रै सो इंगिनी - मरण है ॥ १५ ॥
बहुरि जो प्रायोपगमन संन्यास करे काहू पास वैयावृत्त्य न करावे अपने आपभी न मेरै प्रतिमायोग रहै सो प्रायोपगमनमरण है ॥ १६ ॥
बहुरि जो केवली मुक्तिप्राप्त होय सो केवलिमरण है ॥ १७ ॥ ऐसें सतरह प्रकार कहे तिनिका संक्षेप ऐसा किया है- जो मरण पांच प्रकार है; - पंडित पंडित, पंडित, बालेपंडित, बाल, बालवाल ।