________________
अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका।
१९३
NNNN
आज्ञा द्यो सोही कराँ, तब वशिष्ठ कही अवारतौ मेरै कळू प्रयोजन नांही जन्मांन्तरमैं तुमकू यादि करूंगा। पाछै वशिष्ठ मथुरापुरी आय मासोपवाससहित आतापन जोग स्थाप्या ताकू मथुरापुरीके राजा उग्रसेननैं दखि भक्ति थकी या विचारी जो या मैं पारणां कराऊंगा ऐस नगरमैं घोषणा कराई जो या मुनिकू और कोई आहार न दे । पी2 पारणाकै दिन नगरमैं आया तहां अग्निका उपद्रव देखि अंतराय जानि उलटा फिऱ्या । फेरि मासोपवास स्थाप्या फेरि पारणाकै दिन नगरमैं आया तब हस्तीका क्षोभ देखि अंतराय जांनि उलटा फिय फेरि मासोपवास स्थाप्या। पीछे पारणाकै दिन फेरि नगरमैं आया तब राजा जरासंधका पत्र आया ताके निमित्त तैं राजाका व्यग्र चित्त था सो मुनिकू पडगाहे नांही तब अंतराय करि उलटा वनमैं जाता लोकनिके वचन सुनेजो राजा मुनिकू आहार दे नहीं अन्यकू देते• म किये ऐसे लोकनिके वचन सुनि राजापरि क्रोध करि निदान किया जो-या राजाकै पुत्र होय राजाका निग्रह करि मैं राज करूं या तपका मेरै यह फल होहू; ऐसैं निदानकरि मूवा राजा उग्रसेनकी राणी पद्मावतीका गर्भमैं आया पूर्ण मास भये जनम्या तब याकू क्रूरदृष्टि देखि कांसीकी मंजूषामैं स्थाप्या अर वृत्तान्तका लेख सहित यमुनानदीमैं बहाया, तब कौशांबीपुरमैं मंदोदरी नाम कलाली ताकू लेय पुत्रबुद्धिकरि पाल्या, कंस नाम दिया, तहां बड़ा भया तब बालकनिसूं क्रीडा करै तब सर्वकू दुःख दे, तब मंदोदरी उलाहनांके दुःखतें याकू निकासि दिया, तब यह कंस शौर्यपुर गया, वहां वसुदेव राजाकै पयादा चाकर रह्या । पीछे जरासंध प्रति नारायणका पत्र आया जो पोदनांपुरका राजा सिंहरथनैं बांधि ल्यावै ताकू आधा राज्य सहित पुत्री परणाऊं । तब वसुदेव तहां कंससहित जाय युद्धकरि तिस सिंहरथकू बांधि ल्याया, जरासंध• सौंप्या, तब जरासंध जीवंयशा पुत्रीसहित आधा
अ० व. १३