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पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित
अर्थ — जो कोई सुभट संग्राम मैं सर्वही संग्रामके करनें वालेनि करि सहित कोडि नरनिकं सुगमताकरि जीतै सो सुभट एक नरकं कहा न जीते ? जीतेही ॥
भावार्थ — जो जिनमार्ग मैं प्रवर्त्ते सो कर्मका नाश करें तौ कहा स्वर्गका रोकनेवाला एक पापकर्म ताका नाश न करे ? करैही करे २२ आगैं कहै है जो―स्वर्ग तौ तपकरि सर्वही पावै है परन्तु ध्यानका योगकरि स्वर्ग पावै है सो तिस ध्यानके योगकरि मोक्ष भी पावै है; - गाथा - सग्गं तवेण सव्वो वि पावए किंतु झाणजोएण |
जो पाव सो पाव परलोये सासयं सोक्खं ॥ २३ ॥ संस्कृत- स्वर्गं तपसा सर्वः अपि प्राप्नोति किन्तु ध्यानयोगेन । यः प्राप्नोति सः प्राप्नोति परलोके शाश्वतं सौख्यम् २३ अर्थ — स्वर्ग तौ तपकरि सर्वही पावै है तथापि जो व्यानके योगकरि स्वर्ग पावै है सो ही ध्यानके योगकरि परलोकविषै शाश्वता सुखकं पावैहै ॥
भावार्थ - कायक्लेशादिक तप तौ सर्वही मतके धारक करैं हैं ते तपस्वी मंदकषायके निमित्त सर्वही स्वर्गकूं पावैं हैं, बहुरि जो ध्यानकरि स्वर्ग पावै है सो जिनमार्गविषै कया तैसा ध्यानके योगकरि परलोकविषै शाश्खता है सुख जाविषै ऐसा निर्वाणकूं पावै है || २३॥
आगैं ध्यानके योगकरि मोक्षकूं पावै है ताकूं दृष्टान्त दान्तकरि दृढ करै है;
गाथा - अइसोहनजोएणं सुद्धं हेमं हवेइ जह तह य । कालाईली अप्पा परमप्पओ हवदि || २४ ॥
संस्कृत - अतिशोभनयोगेन शुद्धं हेम भवति यथा तथा च । कालादिलब्ध्या आत्मा परमात्मा भवति ॥ २४ ॥