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अष्टपाहुडमें सूत्रपाहुडकी भाषावचनिका।
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___ भावार्थ-सर्वज्ञके भाषे सूत्र विर्षे जीवादिक नव पदार्थ अर इनिमैं हेय उपादेय ऐसैं बहुत प्रकार करि व्याख्यान है ताकू जानैं सो श्रद्धानवान सम्यग्दृष्टी होय है ॥ ५॥
आगैं कहै हैं जो जिनभाषित सूत्र है सो व्यवहार परमार्थरूप दोय प्रकार है ताकू जानि योगीश्वर शुद्ध भाव करि सुखकू पावैं हैं;गाथा-जं सूत्तं जिणउत्तं वबहारो तह य जाण परमत्थो ।
तं जाणिऊण जोई लहइ सुहं खवइ मलपुंजं ॥ ६॥ संस्कृत-यत्सूत्रं जिनोक्तं व्यवहारं तथा च ज्ञानीहि परमार्थम् ।
तत् ज्ञात्वा योगी लभते सुखं क्षिपते मलपुंज ॥६॥ अर्थ-जो जिन भाषित सूत्र है सो व्यवहार रूप है तथा परमार्थ रूप है ताकू योगीश्वर जानि सुख पावै है बहुरि मलपुंज कहिये द्रव्य कर्म भाव कर्म नोकर्म ताहि क्षेपै है । ___ भावार्थ-जिन सूत्रकू व्यवहार परमार्थ रूप यथार्थ जानि योगीश्वर मुनि है सो कर्मका नाश करि अविनाशी सुखरूप मोक्षकं पावै है। तहां परमार्थ कहिए निश्चय अर व्यवहार इनिका संक्षेप स्वरूप ऐसा जो-जिन आगमकी व्याख्या च्यार अनुयोगरूप शास्त्रनिमैं दोय प्रकार सिद्ध है एक आगमरूप, दूजी अध्यात्मरूप । तहां सामान्य विशेष करि सर्व पदार्थनिका प्ररूपण करिये है सो तौ आगमरूप है। बहुरि जहां एक आत्माहीकै आश्रय निरूपण करिये सो अध्यात्म है । तथा अहेतुमत् अर हेतुमत् ऐसैं भी दोय प्रकार है; तहां जो सर्वज्ञकी आज्ञाही करि केवल प्रमाणता मानिये सो तो अहेतुमत् है । अर जहां प्रमाण नयनि करि वस्तुकी निर्वाध सिद्धि जामैं करि मानिये सो हेतुमत् है । ऐसें दोय प्रकार आगममैं निश्चय