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वचनिकाकारकी प्रशस्ति । ऐसैं श्रीकुन्दकुन्द आचार्यकृत गाथाबंध पाहुडग्रंथ हैं तिनिमैं ये पाहुड हैं तिनिकी यह देशभाषामय वचनिका लिखी है। तहां छह पाहुडकी तो टीका टिप्पण हैं तिनिमैं टीका तौ श्रुतसागरकृत है अर टिप्पण पहलैं काहू और– किया है तिनिमैं केई गाथा तथा अर्थ अन्यप्रकार हैं तहां मेरै विचारमैं आया तिनिका आश्रयभी लिया है अर जैसैं अर्थ मोकू प्रतिभास्या तैसैं लिख्या है। अर लिंगपाहुड अर शीलपाहुड इनि दोऊ पाहुडनिकी टीका टिप्पण मिल्या नाही तारौं गाथाका अर्थ जैसैं प्रतिभासमैं आया तैसैं लिख्या है । अर श्रुतसागरकृत टीका षट्पाहुडकी है तामैं ग्रंथांतरकी साखि आदि कथन बहुत है सो तिस टीकाकी यह वचनिका नांही है, गाथाका अर्थ मात्र वचनिका करि भावार्थमैं मेरी प्रतिभासमैं आया तिस अनुसार लेय अर्थ लिख्या है। अर प्राकृत व्याकरण आदिका ज्ञान मोर्ने विशेष है नांही तातैं कहूं व्याकरणते तथा आगमतें शब्द अर अर्थ अपभ्रंश भया होय तहां बुद्धिमान पंडित मूलग्रंथ विचारि शुद्ध करि वांचियो, मोकू अल्पबुद्धि जांनि हास्य मति करियो, क्षमा करियो, सत्पुरुषनिका स्वभाव उत्तम होय है, दोष देखि क्षमा ही करें हैं। ___ बहुरि इहां कोई कहै तुम्हारी बुद्धि अल्प है तो ऐसे महानग्रंथकी वचनिका क्यौं करी ? ताकू ऐसैं कहनां जो इस कालमै मो” भी मंदबुद्धि बहुत हैं तिनिके समझनेंके अर्थ करी है यामैं सम्यग्दर्शनका दृढ करनां प्रधानकरि वर्णन है तातें अल्पबुद्धी भी वांचें पढ़ें अर्थका धारण करें तौ तिनिकै जिनमतका श्रद्धान दृढ होय, यह प्रयोजन जांनि जैसे अर्थ प्रतिभास आया तैसैं लिखा है. अर जे बडे बुद्धिमान हैं ते मूलग्रंथकू वांचि पढिही श्रद्धान दृढ करेंगे, मेरै कछु ख्याति लाभ पूजाका