Book Title: Ashtpahud
Author(s): Jaychandra Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 428
________________ अष्टपाहुडमें शीलपाहुडकी भाषावचनिका । ३८५ इस प्रकृति संसार पर्यायविर्षे आपा मानै है तथा परद्रव्यनिविर्षे इष्ट अनिष्ट बुद्धि करै है । बहुरि यह प्रकृति पलटै तब मिथ्यात्व का अभाव कहिये तब संसारपर्यायविर्षे आपा न मान है, परद्रव्यानिविः इष्ट अनिष्ट बुद्धि न होय अर इस भावकी पूर्णता न होय तेतैं चरित्रमोहका उदयतें कछू रागद्वेष कषाय परिणाम उपजै ता• कर्मका उदय जाने, तिनि भावनिकं त्यागनेयोग्य जाने, त्याग्या चाहै ऐसी प्रकृति होय तब सम्यग्दर्शनरूपभाव कहिये, इस सम्यग्दर्शनभावतें ज्ञानभी सम्यक् नाम पावै और यथापदवी चारित्रकी प्रवृत्ति होय जेता अंशा रागद्वेष घटै तेता अंशा चारित्र कहिये ऐसी प्रकृतिकू सुशील कहिये, ऐसैं कुशल सुशील शब्दका सामान्य अर्थ है । तहां सामान्यकरि विचारिये तो ज्ञानही कुशील है अर ज्ञान ही सुशील है यातें ऐसे कया है जो ज्ञानकै अर शीलकै विरोध नाही बहुरि जब संसार प्रकृति पलटि मोक्ष सन्मुख प्रकृति होय तब सुशील कहिये, तारौं ज्ञानमैं अर शलिमैं विशेष कह्या जो ज्ञानमैं सुशील न आवै तौ ज्ञानकू इंद्रियनिके विषय नष्ट करै ज्ञानकू अज्ञान करें तब कुशील नाम पावै । बहुरि इहां कोई पूछ-गाथामै ज्ञान अज्ञानका तथा सुशील कुशीलका नाम तो न कह्या, ज्ञान अर शील ऐसा ही कह्या है ताका समाधान-जो पूर्व गाथामैं ऐसीप्रतिज्ञा करी जो मैं शीलके गुणनिकू कहूंगा तातें ऐसा जान्या जाय है जो आचार्यके आशयमैं सुशीलहीके कहनेका प्रयोजन है, सुशीलहीकू शीलनाम करि कहिये, शीलविना कुशील कहिये । बहुरि इहां गुणशब्द उपकारवाचक लेनां तथा विशेषवाचक लेनां, शीलतें उपकार होय है; तथा शीलका विशेष गुण है सो कहसी । ऐसें ज्ञानमैं जो शील न आवै तौ कुशील होय इंद्रियनिके निषयनितें आसक्ति होय तब ज्ञाननाम न पावै, ऐसैं जाननां । बहुरि व्यवहारमैं शीलनाम स्त्रीका संसर्ग वर्जनेंकाभी है सो विषयसेवनकाही म. व. २५

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