Book Title: Ashtpahud
Author(s): Jaychandra Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 442
________________ अष्टपाहुडमें शीलपाहुडकी भाषावचनिका। ३९९ भावार्थ-अन्य सादिकके विष" विषयनिका विष प्रबल है इनिकी आसक्तता” ऐसा कर्मबंध होय है जातें बहुत जन्म मरण होय है ॥२२॥ __ आनें कहै है जो विषयनिकी आसक्तताते चतुर्गतिमैं दुःख ही पावें हैं;गाथा—णरएसु वेयणाओ तिरिक्खए माणुएसु दुक्खाई। देवेसु वि दोहग्गं लहंति विसयासता जीवा ॥२३॥ संस्कृत-नरकेषु वेदनाः तिर्यक्षु मानुषेषु दुःखानि । देवेषु अपि दौर्भाग्यं लभंते विषयासक्ता जीवाः २३ अर्थ-विषयनिविर्षे आसक्त जे जीव हैं ते नरकनिविर्षे अत्यंतवेदनाकू पावै हैं, अर तिर्यचनिविर्षे तथा मनुष्यनिविर्षे दुःखनिकू पा3, बहुरि देवनिविर्षे उपमैं तौ तहां भी दुर्भाग्यपणां पावै नीच देव होय ऐसैं चतुर्गतिनिविर्षे दुःखही पाबैं हैं ॥ भावार्थ-विषयासक्त जीवनिकू कहूं ही सुख नाही है परलोकमैं तो नरक आदिके दुःख पाईंही हैं अर या लोकमैं भी इनिके सेवनेंविर्षे आपदा कष्ट आवै है तथा सेवा” आकुलता दुःखही है, यह जीव भ्रमतें सुख मान है, सत्यार्थ ज्ञानी तौ विरक्तही होय है ॥२३॥ ___ आज कहै है जो-विषयनिके छोडनेमैं भी कछु हानि नांही है;गाथा-तुसधम्मंतवलेण य जह दव्वं ण हि णराण गच्छेदि। तवसीलमंत कुसली खपंति विसयं विस व खलं ॥२४॥ संस्कृत-तुषधमलेन च यथा द्रव्यं न हि नराणां गच्छति । तपः शीलमंतः कुशलाः क्षिपंते विषयं विषमिव खलं ॥ अर्थ-जैसैं तुषनिके चलानेकरि उडावनेंकार मनुष्यनिको कछू द्रव्य नाही जाय है तैसैं तप अर शीलवान् जे पुरुष हैं ते विषयनिकू खलकी ज्यौं क्षेपैं हैं दूर गेरें हैं ।

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