Book Title: Ashtpahud
Author(s): Jaychandra Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 400
________________ अष्टपाहुडमें मोक्षपाहुडकी भाषावचनिका । ३५७ ते अपि स्फुटं तिष्ठन्ति आत्मनि तस्मादात्मा स्फुटं मे शरणं ॥१०४॥ अर्थ--अर्हन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय अर साधु ये पंच परमेष्ठी हैं ले भी आत्माविर्षे ही चेष्टारूपहैं आत्माकी अवस्थाहैं ,तातें मेरै आत्माहीका शरणा है, ऐसैं आचार्य अभेदनय प्रधानकरि कह्या है ॥ ____भावार्थ-ये पांच पद आत्माहीके हैं जब यह आत्मा घातिकर्मका नाश करै है तब अरहंतपद होय है, बहुरि सो ही आत्मा अघाति कर्मनिका नाशकरि निर्वाणकू प्राप्त होय है तब सिद्धपद कहावै है, बहुरि जब शिक्षा दीक्षा देनेवाला मुनि होय है तब आचार्य कहावै है, बहुरि पठनपाठनविर्षं तत्पर ऐसा मुनि होय है तब उपाध्याय कहावै है, अर जब रत्नत्रयस्वरूप मोक्षमार्गकू केवल साधैही तब साधु कहावै है; ऐसैं पांचू पद आत्माहीमै हैं । सो आचार्य विचारै है जो या देहमैं आत्मा तिष्ठै है सो यद्यपि कर्मआच्छादित है तौऊ पांचूं पदयोग्य है, याहीकू शुद्धस्वरूप ध्याये पांचूं पदका ध्यान है तातें मेरै या आत्माहीका शरणा है ऐसी भावनां करी है, अर पंचपरमेष्ठीका ध्यानरूप अंतमंगल जानाया है ॥ १०४ ॥ ___ आज कहै है जो अंतसमाधिमरणमैं च्यारि आराधनाका आराधन कह्या है सो येभी आत्माहीका चेष्टा है तातै आत्माहीका मेरै शरणां है;गाथा-सम्मत्तं सण्णाणं सच्चारित्तं (य) सत्तवं चेव । चउरो चिहहि आदे तम्हा आदा हु मे सरणं ॥१०५॥ संस्कृत-सम्यक्त्वं सज्ज्ञानं सच्चारित्रं सत्तपः चैव । ___ चत्वारः तिष्ठन्ति आत्मनि तसादात्मा स्फुटं मे शरणं १०५ अर्थ—सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र अर सम्यक् तप ये च्यारि आराधना हैं तेभी आत्माविही चेष्टारूप हैं, ये च्यारूं आत्माहीकी

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