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अष्टपाहुडमें मोक्षपाहुडकी भाषावचनिका ।
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भावार्थ - बहिरात्मा कूं छोडि अंतरात्मारूप होय परमात्माकूं ध्यावनां, यातैं मोक्ष होय है ॥४॥
आगैं तीन प्रकार आत्माका स्वरूप दिखावै है;
गाथा — अक्खाणि वाहिरप्पा अंतरअप्पा हु अप्प कप्पो । कम्मलंकविको परमप्पा भण्ण देवो ||५||
संस्कृत - अक्षाणि बहिरात्मा अन्तरात्मा स्फुटं आत्मसंकल्पः । कर्म कलंक विमुक्तः परमात्मा भण्यते देवः ॥ ५ ॥
अर्थ — अक्ष जे इंद्रिय स्पर्शनादिक तेतौ बाह्य आत्मा हैं जातें इंद्रयनिकरि स्पर्श आदि विषयनिका ज्ञान होय तब लोक कहै ऐसें ही जो इंद्रिय है सो ही आत्मा है, ऐसैं जो इंद्रियनिकूं बाह्य आत्मा कहिये । बहुरि अंतरात्मा है सो अन्तरंगविषै आत्माका प्रगट अनुभवगोचर संकल्प है, शरीर इंद्रियनित न्यारा मनकै द्वारे देखने जाननेवाला है सो मैं हूं, ऐसैं स्वसंवेदनगोचर संकल्प सो ही अन्तरात्मा है । बहुरि कर्म जो द्रव्यकर्म ज्ञानावरणादिक अर भावकर्म राग द्वेष मोहादिक नोकर्म शरीरादिक सो ही भया कलंकमल तिसकरि विमुक्त रहित अनंतज्ञानादिकगुणसहित सो ही परमात्मा है, सो ही देव है, अन्यकूं देव कहनां उपचार है ॥
भावार्थ - बाह्य आत्मा तौ इंद्रियनिक कह्या, अर अंतरात्मा देह मैं तिष्ठता देखनां जाननां जाकै पाइये ऐसा मनकै द्वारै संकल्प सो है, बहुरि परमात्मा कर्मकलंकसूं रहित कथा । सो इहां ऐसा जनाया है जोयह जीवही जेतैं बाह्य शरीरादिकहांकूं आत्मा जाने है तेतैं तौ बहिरात्मा है संसारी है, बहुरि जब येही जीव अंतरंगविषै आत्माकूं जाने है तब यह सम्यग्दृष्टी होय है तब अंतरात्मा है, अर यह जीव जब परमात्माका ध्यान करि कर्मकलंक रहित होय तब पहलै तौ केवलज्ञान उपजाय