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अष्टपाहुडमें सूत्रपाहुडकी भाषावचनिका ।
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संस्कृत- अवशेषा ये लिंगिनः दर्शनज्ञानेन सम्यक् संयुक्ता । चेलेन च परिगृहीताः ते भणिता इच्छाकारयोग्याः ॥ १३
अर्थ — दिगंबर मुद्रासिवायं अवशेष जे लिंगी हैं भेषकर संयुक्त अर सम्यक्त्वसहित दर्शन ज्ञान करि संयुक्त हैं अर वस्त्र करि परिगृहीत हैं वस्त्र धारें हैं ते इच्छाकार करने योग्य हैं |
भावार्थ — जे सम्यग्दर्शन ज्ञान करि संयुक्त हैं अर उत्कृष्ट श्रावकका भेष धारैं हैं एक वस्त्रमात्र परिग्रह राखेँ हैं सो इच्छाकार करनें योग्य हैं तातैं " इच्छामि " ऐसा कहिये है। ताका अर्थ- जो मैं तुमकूं इच्छ्रं हूं चाहूंहूं ऐसा ' इच्छामि' शब्दका अर्थ है । ऐसैं इच्छाकार करना जिनसूत्रमैं कह्या है ॥ १३ ॥
आगैं इच्छाकार योग्य श्रावकका स्वरूप कहैं हैं;गाथा - इच्छायारमहत्थं सुत्तठिणो जो हु छंडए कम्मं । ठाणे हियसम्मत्तं परलोयसुहंकरो होइ ॥ १४ ॥ संस्कृत — इच्छाकारमहार्थं सूत्रस्थितः यः स्फुटं त्यजति कर्म । स्थाने स्थितसम्यक्त्वः परलोकसुखंकरः भवति १४
अर्थ – जो पुरुष जिनसूत्रविषै तिष्ठता संता इच्छाकार शब्दका महान प्रधान अर्थ है ताहि जानै है बहुरि स्थान जो श्रावक के भेदरूप प्रतिमा तिनिमैं तिष्ठया सम्यक्त्वसहित वर्त्तता आरंभ आदि कर्मानिकूं छोड़ै है सो परलोकविषै सुख करनेवाला होय है ॥
भावार्थ — उत्कृष्ट श्रावककूं इच्छाकार करिये है सो इच्छाकारका जो प्रधान अर्थ है ताकूं जाने है अर सूत्र अनुसार सम्यक्त्वसहित आरंभादिक छोड़ि उत्कृष्ट श्रावक होय सो परलोकविषै स्वर्गका सुख पावै है ॥ १४ ॥
अ० व० ५