Book Title: Ashtpahud
Author(s): Jaychandra Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti
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वचनिकाकारकी प्रशस्ति ।
पंडित तिनिमैं बहुत हैं मैं भी इक जयचंद। प्रेयां सबकै मन कियो करन वचनिका मंद ॥ ६॥ कुन्दकुन्द मुनिराजकृत प्राकृत गाथा सार । पाहुड अष्ट उदार लखि करी वचनिका तार ॥७॥ इहां जिते पंडित हुते तिनिनैं सोधी येह । अक्षर अर्थ सुवांचि पढ़ि नहि राख्यो संदेह ॥ ८ ॥ तौऊ कछू प्रमादतै बुद्धिमंद परभाव । हीनाधिक कछु अर्थ है सोधो बुध सतभाव ॥९॥ मंगलरूप जिनेंद्रकुं नमस्कार मम होहु । विघ्न टलै शुभबंध द्वै यह कारन है मोहु ॥ १० ॥ संवत्सर दश आठ सत सतसठि विक्रमराय । मास भाद्रपद शुक्ल तिथि तेरसि पूरन थाय ॥ ११ ॥
इति वचनिकाकारप्रशस्ति । जयतु जिनशासनम् ।
शुभमिति ।
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