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अष्टपाहुडमें शीलपाहुडको भाषावचनिका।
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संस्कृत-उदधिरिव रत्नभृतः तपोविनयशीलदानरत्नानाम् ।
शोभते च सशीलः निर्वाणमनुत्तरं प्राप्तः ॥ २८ ॥ अर्थ जैसैं समुद्र रत्ननिकरि भन्या है तौऊ जलसहित सोभै है तैसैं यह आत्मा तप विनय शील दान इनि रत्ननिमैं शीलसहित सोभै है जातें जो शीलसहित भया ता. अनुत्तर कहिये जाते परै और नाही ऐसा निर्वाणपदकू पाया ॥ . ___ भावार्थ-जैसैं समुद्र मैं रत्न बहुत हैं तोऊ जलहीतें समुद्र नाम पावै है तैसैं आत्मा अन्य गुणनिकरि सहित होय तोऊ शीलकरि निर्वाणपद पावै, ऐसें जाननां ॥ २८॥ __ जे शीलवान पुरुष हैं ते ही मोक्ष पावैं हैं यह प्रसिद्धिकरि दिखावै है;गाथा-सुणहाण गद्दहाण य गोपसुमहिलाण दीसदे मोक्खो ।
जे सोधंति चउत्थं पिच्छिजंता जणेहि सव्वेहिं ॥२९॥ संस्कृत-शुनां गर्दभानां च गोपशुमहिलानां दृश्यते मोक्षः।
___ये शोधयंति चतुर्थ दृश्यतां जनैः सर्वैः ॥ २९ ॥
अर्थ-आचार्य कहै है जो-ये सर्व जन देखो-स्वान गर्दभ इनिमैं बहुरि गऊ आदि पशु अर स्त्री इनिमैं काहूकै मोक्ष होनां दीखै है ? सो तौ दीख ता नाही, मोक्ष तौ चौथा पुरुषार्थ है यातें जो चतुर्थ जो पुरुषार्थ ताहि सोधैं है हैरै है ताहीकै मोक्ष होनां देखिये है ॥ ___ भावार्थ-धर्म अर्थ काम मोक्ष ये च्यार पुरुषकेही प्रयोजन कहे हैं यह प्रसिद्ध है, याहीरौं इनिका नाम पुरुषार्थ है ऐसा प्रसिद्ध है। तहां इनिमैं चौथा पुरुषार्थ मोक्ष है ताळू पुरुषही सोधै अर पुरुषही ताकू हेरि ताकी सिद्धि करै, अन्य स्वान गर्दभ बैल पशु स्त्री इनिकै मोक्षका सोधनां