Book Title: Ashtpahud
Author(s): Jaychandra Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 447
________________ ४०४ पंडित जयचंद्रजी झावड़ा विरचित - प्रसिद्ध नांही जो होय तौ मोक्षका पुरुषार्थ ऐसा नाम काहेकूं होय । इहां आशय ऐसा जो मोक्ष शीलतें होय है, जे स्वान गर्दभ आदिक हैं ते तौ अज्ञानी हैं कुशीली हैं, तिनिका स्वभाव प्रकृतिही ऐसी है जो पलटिकरि मोक्ष होनें योग्य तथा ताके सोधने योग्य नांही है, तातैं पुरुषकूं मोक्षका साधन शीलकं जानि अंगीकार करनां; सम्यग्दर्शनादिक हैं ते शीलही के परिवार पूर्वै कहे ही हैं ऐसें नाननां ॥ २९ ॥ आगे कहै है जो शील बिना ज्ञानही करि मोक्ष नाही, याका उदाहरण कहैं हैं ; गाथा -- जइ विसयलोल एहिं णाणीहि हविज्ज साहिदो मोक्खो । तो सो सच्च पुत्तो दस पुव्वीओ वि किं गदो णरयं ३० संस्कृत - यदि विषयलोलैः ज्ञानिभिः भवेत् साधितः मोक्षः । तर्हि सः सात्यकिपुत्रः दशपूर्विकः किं गतः नरकं ३० अर्थ — जो विषयनित्रिषै लोल कहिये लोलुप आसक्त अर ज्ञानसहित ऐसा ज्ञानीनिने मोक्ष साध्या होय तौ दर्शपूर्वका जाननेवाला रुद्र नरककूं क्यों गया ॥ भावार्थ — कोरा ज्ञानहीसूं मोक्ष काढूनैं साच्या कहिये तौ दश पूर्वका पाठी रुद्र नरक क्यों गया तातैं शीलबिना कोरा ज्ञानहीतैं मोक्ष नांही, रुद्र कुशील सेवनेवाला भया, मुनि पदतैं भ्रष्ट होय कुशील सेया तातैं नरक में गया, यह कथा पुराणनिमैं प्रसिद्ध है ॥ ३० ॥ आगे कहै है शीलविना ज्ञानहीतैं भावकी शुद्धता न होय है; -- गाथा - जह णाणेण विसोहो सीलेग विणा वुहेहिं णिद्दिठो । दसपुव्विस भाव णु किं पुणु णिम्मलो जादो ३१ संस्कृत - यदि ज्ञानेन विशुद्धः शीलेन विना बुधैर्निर्दिष्टः दशपूर्विकस्य भावः च न किं पुनः निर्मलः जातः ३१

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