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अष्टपाहुडमें सूत्रपाहुडकी भाषावचनिका। ५९. शास्त्रके ज्ञान कहिये जीवादिक पदार्थनिके ज्ञानकू ज्ञान कहिये इत्यादि। तथा पंच महाव्रत पंच समिति तीन गुप्तिरूप प्रवृत्तिकू चारित्र कहिये। तथा बारह प्रकार तपकू तप कहिये । ऐसें भेदरूप तथा परद्रव्यके आलं-- बनरूप प्रवृत्ति हैं ते सर्व अध्यात्मशास्त्र अपेक्षा व्यवहार नामकरि कहिये हैं जातें वस्तुका एकदेशकू वस्तु कहनां सो भी व्यवहार है, अर परद्रव्यका आलंबनरूप प्रवृत्तिकू तिस वस्तुके नामकरि कहनां सो भी व्यवहार है । वहुरि अध्यात्मशास्त्रमैं ऐसैं भी वर्णन है जो वस्तु अनंतधर्मरूप है सो सामान्य विशेषकरि तथा द्रव्यपर्यायकरि वर्णन कीजिए है तहां द्रव्यमात्र कहनां तथा पर्यायमात्र कहनां सो व्यवहारका विषय है । बहुरि द्रव्यका भी तथा पर्यायका भी निषेध करि वचन अगोचर कहनां सो निश्चयनयका विषय है । बहुरि द्रव्यरूप है सो ही पर्याय रूप है ऐसैं दोऊहीकू प्रधान करि कहनां सो प्रमाणका विषय है, याका उदाहरण ऐसा जैसैं जीवकू चैतन्य रूप नित्य एक अस्तिरूप इत्यादि अभेदमात्र कहनां सो तौ द्रव्यार्थिकनयका विषय है अर ज्ञानदर्शनरूप अनित्य अनेक नास्तित्वरूप इत्यादि भेदरूप कहनां सो पर्यायार्थिक नयका विषय है । अर दोऊ ही प्रकारकै प्रधानताका निषेधमात्र वचन अगोचर कहनां सो निश्चयनयका विषय है । अर दोऊ ही प्रकारकू प्रधान करि कहनां प्रमाणका विषय है इत्यादि । ऐसें निश्चय व्यवहारका सामान्य संक्षेप स्वरूप है ताकू जानि जैसैं आगम अध्यात्म शास्त्रनिमैं विशेष करि वर्णन होय ताकू सूक्ष्मदृष्टिकरि जाननां जिनमत अनेकांतस्वरूप स्याद्वाद है, अर नयनिकै आश्रय कथनी है तहां नयनिकै परस्पर विरोध है ताकू स्याद्वाद मेंटै है, ताका विरोधका तथा अविरोधका स्वरूप नीकै जाननां, सो यथार्थ तौ गुरु आम्नायही” होय परन्तु गुरुका निमित्त इस कालमैं विरला होय गया तातें अपना ज्ञानका वल चालैं जेतें विशेष