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अष्टपाहुडमें शीलपाहुडकी भाषाक्चनिका ।
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याळू संसारप्रकृति कहिये, बहुरि यह प्रकृति पलटै अर सम्यक् प्रकृति होय सो सुशील है याकू मोक्षसन्मुख प्रकृति कहिये । ऐसैं सुशीलके जीवदयादिक गाथामैं कहे ते सर्वही परिवार है जातै संसारप्रकृति पलटै तब संसारदेहसू वैराग्य होय अर मोक्षसूं अनुराग होय तब सम्यग्दर्शनादिक परिणाम होय तब जेती प्रकृति होय सो मोक्षकै सन्मुख होय, यही सुशील है सो जाकै संसारको ओड आवै है तब यह प्रकृति होय है अर यह प्रकृति न होय तेरौं संसारभ्रमण है ही, ऐसें जाननां ॥ १९ ॥ ___ आणु शील है सो ही तप आदिक है ऐसैं शीलकी महिमा कहै है;गाथा—सीलं तवो विसुद्धं दंसणसुद्धीय णाणसुद्धी य ।
शीलं विसयाण अरी सीलं मोक्खस्स सोवाणां ॥२०॥ संस्कृत-शीलं तपः विशुद्धं दर्शनशुद्धिश्च ज्ञानशुद्धिश्च ।
शीलं विषयाणामरिः शीलं मोक्षस्य सोपानम् ॥२०॥ अर्थ—शील है सो ही विशुद्ध निर्मल तप है, बहुरि शील है सो ही दर्शनकी शुद्धिता है, बहुरि शील हैं सो ही ज्ञानकी शुद्धता है, बहुरि शील है सो ही विषयनिका शत्रु है, बहुरि शील है सो ही मोक्षकी पैडी है ॥
भावार्थ-जीव अजीवः पदार्थनिका ज्ञानकरि तामैसूं मिथ्यात्व अर कषायनिका अभाव करनां सो सुशील है सो यह आत्माका ज्ञानस्वभाव है सो संसारप्रकृति मिटि मोक्षसन्मुख प्रकृति होय तब या शीलहीके तप आदिक सर्व नाम हैं-निर्मल तप शुद्ध दर्शन ज्ञान विषय कषायनिका मेटनां मोक्षकी पैडी ये सर्व शीलके नामके अर्थ हैं, ऐसा शीलका माहात्म्य वर्णन किया है बहुरि केवल महिमाही नाही है इनि सर्व भावनिकै अविनाभावीपणां जनाया है ॥ २० ॥