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अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका।
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मानकषायकी कलुषता रही जो भरतकी भूमिमैं मैं कैसैं रहूं तब कायोत्सर्ग योगकरि एकवर्षतांई तिष्ठे केवलज्ञान न पाया पीछे कलुषता मिटी तब केवलज्ञान उपज्या. ता” कहै है जो ऐसे महान पुरुष बडी शक्तिके धारकभी भावशुद्धिविना सिद्वि न पाई तब अन्यकी कहा कथा ? तातैं भाव शुद्ध करनां यह उपदेश है ॥ ४४ ॥ ____ आगैं मधुपिंगमुनिका उदाहरण कहै है;गाथा-महुपिंगो णाम मुणी देहाहारादिचत्तवावारो ।
सवणत्तणं ण पत्तो णियाणमित्तेण भवियणुय ॥४५॥ संस्कृत-मधुपिंगो नाम मुनिः देहाहारादित्यक्तव्यापारः ।
श्रमणत्वं न प्राप्तः निदानमात्रेण भव्यनुत ! ॥४५॥ अर्थ-मधुपिंगनामा मुनि है सो कैसा भया देह आहारादिविर्षे छोड्या है व्यापार जानें तौऊ निदानमात्रकरि भावश्रमणपणाकू प्राप्त न भया ताहि भव्यजीवनिकरि नमने योग्य मुनि तू देखि ॥ ___ भावार्थ-मधुपिंगलनामा मुनिकी कथा पुराणमैं है ताका संक्षेप ऐसा;—इस भरतक्षेत्रविर्षे सुरम्यदेशमैं पोदनापुरका राजा तृणपिंगलका पुत्र मधुपिंगल था सो चारणयुगलनगरका राजा सुयोधनकी पुत्री सुलसाका स्वयंवरमैं आयाथा अर तहांही साकेतापुरीका राजा सगर आयाथा सो सगरकै मंत्री, मधुपिंगलकू कपटकरि सामुद्रिक शास्त्रकू नवीन वणाय दूषणदिया जो याके नेत्र पिंगल है मांजरा है जो याकू कन्या वरै सो मरणकू प्राप्त होय तब कन्या सगरकै गलै वरमाला गेरी मधुपिंगल• वय नाही, तब मधुपिंगल विरक्त होय दीक्षा लई पी? कारणपाय सगरका मंत्रीका कपटकू जाणि क्रोधकरि निदान किया जो मेरै तपका ‘फल यह होहु “जन्मान्तरविर्षे सगरके कुलकू निर्मूल करूं" तापी,